किसानों के संग्राम का अंत कब होगा ये सवाल पिछले डेढ़ महीने से बना हुआ है। किसानों के आंदेलन पर सियासत ने भी पैर पसार रखे हुए हैं। किसानों के बहाने विपक्ष अपनी खोई हुई सियासी जमीन को ढूंढ रहा है। 8 जनवरी को सरकार और किसान के बीच वार्ता विफल होने के बाद से कांग्रेस किसी भी स्थिति में इस मुद्दे को नहीं छोड़ना चाहती है। इसी क्रम में 15 जनवरी को कांग्रेस पार्टी देशव्यापी प्रदर्शन करेगी। यह प्रदर्शन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में किया जाएगा। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने शनिवार को कहा कि किसानों के समर्थन में 15 जनवरी को हर प्रांतीय मुख्यालय पर किसान अधिकार दिवस के रूप में एक जनांदोलन तैयार करेगी। धरना प्रदर्शन और रैली के बाद राजभवन तक मार्च किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन के जरिये सरकार से गुहार लगाएगी तीनों काले कृषि कानूनों को वापस लिया जाय।

आक्रोश का कब निकलेगा समाधान ?

इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार को किसानों के मुद्दे पर पार्टी महासचिवों और प्रभारियों के साथ बैठक की। इस बैठक में प्रियंका गांधी समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई इस बैठक में उन्होंने किसान संगठनों और सरकार के बीच हुई 8वें दौर की वार्ता के बेनतीजा रहने के लिए सरकार के अड़ियल रवैये को जिम्मेदार ठहराया है। अब हालांकि 15 जनवरी को 9वें दौर की बैठक होगी। उसी दिन कांग्रेस ने देशव्यापी प्रदर्शन का ऐलान किया है। सरकार किसानों को तारीख पर तारीख दे रही है लेकिन किसानों की मांग से पीछे हटते नजर आ रही है। वहीं इस मामले पर केंद्रीय कृषि मंत्री का कहना है कि हमने बार-बार कहा है कि किसान यूनियन अगर कानून वापस लेने के अलावा कोई विकल्प देंगी तो हम बात करने को तैयार हैं। आंदोलन कर रहे लोगों का मानना है कि इन क़ानूनों को वापस लिया जाए। लेकिन देश में बहुत से लोग इन कानूनों के पक्ष में नजर आ रहे हैं।

कांग्रेस के निशाने पर केंद्र सरकार

कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शनिवार को कहा कि 73 साल के देश के इतिहास में ऐसी निर्दयी और निष्ठुर सरकार कभी नहीं रही। यह सरकार अंग्रेजों और ईस्ट इंडिया कंपनी से भी ज्यादा बेरहम है। उन्होंने कहा, अब देश का किसान काले कानूनों को खत्म कराने के लिए करो या मरो की राह पर चल पड़ा है। लाखों अन्नदाता 40 दिन से अधिक से दिल्ली की सीमाओं पर काले कानून खत्म करने की गुहार लगा रहे हैं। उन्होंने कहा,  हाड़ कंपाती सर्दी, बारिश, ओलों में 60 से अधिक अन्नदाता ने दम तोड़ दिया. प्रधानमंत्री के मुंह से देश पर कुर्बान होने वाले उन 60 किसानों के लिए सात्वंना का एक शब्द भी नहीं निकला।

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