दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति ने यूनिवर्सिटी के बनने वाले अगले कैंपस का नाम वीर सावरकर और बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री रहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज के नामपर रखने का फैसला लिया है. ये फैसला दिल्ली यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद की बैठक में लिया गया है.

वीसी का बड़ा फैसला
दिल्ली यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद की बैठक में इसके तीनों सदस्यों सीमा दास, राजपाल सिंह पवार और अधिवक्ता अशोक अग्रवाल की असहमति के बावजूद वीसी ने सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति में प्रस्तावित बदलावों को भी लागू कर दिया गया।

डीयू को हो सकता है नुकसान
दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेज में उम्मीदवारों की संख्या सीमित नहीं है. ऐसे में विश्वविद्यालय विभागों के लिए, पहली वैकेंसी के लिए न्यूनतम 30 और प्रत्येक अतिरिक्त वैकेंसी के लिए 10 उम्मीदवारों आमंत्रित किया जाएगा. वहीं, सदस्यों ने सहायक प्रोफेसरों के चयन के लिए पीएचडी को महत्व दिए जाने पर असंतोष जताया है।

असंतुष्ट सदस्यों ने शिक्षा मंत्रालय से की मांग
असंतुष्ट सदस्यों ने शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा कि, “एड हॉक, टेंपररी या कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर नियुक्त और काम करने वाले और पात्रता मानदंडों को पूरा करने वालों को संबंधित विश्वविद्यालय और या उसके कॉलेजों में इंटरव्यू के लिए शॉर्टलिस्ट किया जाएगा.”

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वहीं सीमा दास ने इस मामले को लेकर बताया कि, “वीसी ने कहा कि वे देखेंगे कि इस लेटर पर क्या करने की जरूरत है. विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद ने अगस्त में हुई अपनी बैठक में वीर सावरकर और सुषमा स्वराज के नाम पर आगामी कॉलेजों और सुविधा केंद्रों का नाम रखने का फैसला किया था. परिषद ने अटल बिहारी वाजपेयी, सावित्री बाई फुले, अरुण जेटली, चौधरी ब्रह्म प्रकाश और सीडी देशमुख के नामों का भी सुझाव दिया है.”

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