किसान कानूनों के लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच मोदी सरकार की तरफ से किसानों के लिये एक पत्र के रूप मे प्रस्ताव भेजा गया था। जिसमेंउनसे मिलने का समय मांगा गया था, इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने बातचीत का भी प्रस्ताव रखा था। लेकिन किसानों ने केन्द्र सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। किसानों का कहना है कि, जब तक केन्द्र सरकार कोई ठोस प्रस्ताव नहीं लाएगी तब तक किसान कोई प्रस्ताव नहीं मानेगें। किसानों ने कहा है कि, केन्द्र सरकार को किसान कानून वापस ही लेना पड़ेगा। वहीं सरकार कानून वापस लेने के मूड में बिल्कुल भी नजर नहीं आ रही है।
किसानोंं ने सरकार के बातचीत के प्रस्तावोंं को ठुकराया
संयुक्त किसान मोर्चा तरफ से बयान जारी करते हुए कहा गया है कि, किसान कानूनों में कोई संशोधन नहीं चाहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि, सरकार अगर अच्छी मंशा से बात तकरना चाहती है तो हम तैयार हैं। आपको बता दें,संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले करीब 40 किसान संगठनों के नेता हैं और सिंघु बॉर्डर पर तीनों किसान कानूनों को वापस कराना चाहते हैं।इसके साथ हीकिसान संगठनों ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेन्स की जिसमें योगेंद्र यादव ने कहा कि, किसान संगठन सरकार से वार्ता करने के लिए तैयार हैं। खुले मन से वार्ता की मेज पर आने के लिए सरकार का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन इस बार सरकार ठोस प्रस्तावों के साथ आये तभी बात करेंगे। किसानों ने साफ कह दिया है कि, सरकार को कानून वापस लेना ही होगा।
किसानों और सरकार के बीच क्यों नहीं बन रही बात?
किसानों ने बात करने से साफ मना कर दिया है। आपको बता दें, किसानों और सरकार के बीच 6 राउंड की बैठक हो चुकी है। लेकिन बात नहीं बन सकी। किसान कानून वापस कराना चाहते हैं । वहीं सरकार कानून वापस न करके संशोधन करने पर अड़ी है। ऐसे में ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच चुका है। किसान आंदोलन को आम जनता के साथ-साथ राजनैतिक दलों का भी समर्थन मिल रहा है। यही वजह है कि, केन्द्र सरकार बातचीत के लिये किसानों को मना रही है। लेकिन किसान कानून वापस नहीं ले रही है। किसान भी किसान कानून को वापस कराने की मांग पर अड़े हुए हैं।