आज देशभर में उस महान व्यक्ति की जयंती मनाई जा रही है, जिस व्यक्ति ने हमारे देश के लिया संविधान का निर्माण किया। जी हाँ, 14 अप्रैल 1891 में जन्मे बाबा साहेब की आज 130वीं जयंती मनाई जा रही है। डॉ. बीआर अंबेडकर की जयंती के दिन सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया गया है। 31 मार्च 1990 को उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। अपने जीवन में बाबा साहेब ने बहुत मुश्किलों का सामना किया था। जाति प्रथा और समाज में कुव्यवस्था के खिलाफ हर किसी को समान अधिकार मिलें, इस अधिकार को पाने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया था। इतनी मुश्किलों को झेलने के बावजूद भी बाबा साहेब कभी भी कमजोर नहीं पड़े। परिणामस्वरूप वो एक मजबूत व्यक्तित्व के साथ उभरे।

डॉ. बीआर अंबेडकर की 130वीं जयंती के अवसर पर पीएम मोदी ने आज वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये भारतीय विश्वविद्यालय संघ की 95वीं वार्षिक बैठक और वायस चांसलर्स के राष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित किया। पीएम मोदी ने डॉ भीमराव अंबेडकर पर किशोर मकवाने द्वारा लिखित पुस्तकों का विमोचन भी किया और साथ ही पीएम मोदी ने अपने संबोधन में भीमराव अंबेडकर के विचारों का याद किया है। पीएम मोदी ने बाबा साहेब को याद करते हुए कहा कि – देश बाबा साहेब अंबेडकर के कदमों पर चलते हुए तेजी से गरीब, वंचित, शोषित, पीड़ित सभी के जीवन में बदलाव ला रहा है। बाबा साहेब ने समान अवसरों की बात की थी, समान अधिकारों की बात की थी। आज देश जनधन खातों के जरिए हर व्यक्ति का आर्थिक समावेश कर रहा है।

आगे पीएम मोदी ने कहा कि – आजादी की लड़ाई में हमारे लाखों-करोड़ों स्वाधीनता सेनानियों ने समरस, समावेशी भारत का सपना देखा था। उन सपनों को पूरा करने की शुरुआत बाबासाहेब ने देश को संविधान देकर की थी। बाबा साहेब के जीवन संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए भी आज देश काम कर रहा है। बाबा साहेब से जुड़े स्थानों को पंच तीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है।

पीएम मोदी ने भारतीय विश्वविद्यालय संघ की 95वीं वार्षिक बैठक और वायस चांसलर्स के राष्ट्रीय सेमिनार में मौजूद अध्यापकों और विद्यार्थियों के सामने तीन सवाल रखते हुए कहा कि – हर छात्र का अपना एक सामर्थ्य होता है, क्षमता होती है। इन्हीं क्षमताओं के आधार पर स्टूडेंट्स और टीचर्स के सामने तीन सवाल भी होते हैं। पहला- वो क्या कर सकते हैं? दूसरा- अगर उन्हें सिखाया जाए, तो वो क्या कर सकते हैं? और तीसरा- वो क्या करना चाहते हैं ? इस मौके पर भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि – डॉ. राधाकृष्णन जी ने शिक्षा के जिन उद्देश्यों की बात की थी, वो ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मूल में दिखते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति जितनी व्यावहारिक है, उतना ही व्यावहारिक इसे लागू करना भी है।

Share.
Exit mobile version