केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में रविवार को किसानों के ‘शक्ति प्रदर्शन’ की गूंज पूरे देश में सुनाई दी। अलग-अलग राज्यों से बड़ी संख्‍या में किसान मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कॉलेज मैदान में ‘किसान महापंचायत’ के लिए जुटे।  तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन को नौ महीने से अधिक समय हो गया है। किसान उन कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। उन्हें डर है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को खत्म कर देंगे। सरकार के साथ किसानों की 14  दौर से अधिक की बातचीत हुई। लेकिन, दोनों पक्षों के बीच गतिरोध खत्‍म नहीं हुआ। इन कानूनों के विरोध में रविवार को किसान महापंचायत का आह्वान किया गया था। इसमें किसानों का हुजूम उमड़ा। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा –

‘हमें देश को बिकने से रोकना है। किसान को बचाना चाहिए, देश को बचाना चाहिए, कारोबारियों, कर्मचारियों और युवाओं को बचाना चाहिए, यही रैली का उद्देश्य है।’

2022 में इसलिए अहम है यह किसान महापंचायतकिसानों में लगातार केंद्र सरकार के खिलाफ आक्रोश पनप रहा है। हरियाणा में इसी सप्ताह किसानों पर हुए बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज के बाद मुजफ्फरनगर की किसान महापंचायत को धार मिलनी शुरू हो गई है। 2022 में यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव में अब लंबा समय नहीं है। यूपी के बाद उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में में भी चुनाव होंगे। ऐसे में किसानो की इस महापंचायत से निकले संदेश यूपी की सियासत का रुख तय करेंगे।

मुजफ्फरनगर में महापंचायत किए जाने के पीछे की रणनीति भी समझ लीजिए…

  • मुजफ्फरनगर से सटे सहारनपुर जिले को गेटवे ऑफ यूपी भी कहा जाता है। मुजफ्फरनगर का विधानसभा क्षेत्र नंबर-एक भी सहारनपुर जिले में है। भाजपा सरकार यूपी में अपने ज्यादातर चुनावी अभियानों की शुरुआत सहारनपुर जिले से करती है। मुजफ्फरनगर के पड़ोस में मेरठ है, जिसे वेस्ट यूपी का केंद्र माना जाता है।
  • मुजफ्फरनगर से 25 किलोमीटर आगे चलते ही उत्तराखंड शुरू हो जाता है। उत्तराखंड में भी छह महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। इसके अलावा मुजफ्फरनगर भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक रहे बाबा महेंद्र सिंह टिकैत का गृह जनपद भी है।
  • किसान आंदोलन में राकेश टिकैत देशभर में एक बड़ा चेहरा बन चुके हैं। इन सब वजहों से इस महापंचायत के लिए मुजफ्फरनगर को चुना गया । मुजफ्फरनगर महापंचायत का प्रभाव उत्तराखंड समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर, अलीगढ़, आगरा, मुरादाबाद, बरेली मंडल पर खासतौर से जाएगा।

किसान आंदोलन इफेक्ट ही रहा कि पंचायत चुनाव में कुल 445 पंचायत सदस्यों में से 99 सदस्य ही जीत पाए । गांव-गांव पार्टी प्रत्याशियों का विरोध हुआ। कई जगह तो उन्हें बैरंग लौटना पड़ा था। हालांकि कम सदस्य होने के बावजूद जोड़तोड़, बाहुबल से 14 में से 13 जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा के बन गए। पंचायत चुनाव के इन्हीं नतीजों को ध्यान में रखते हुए किसान संगठन “मिशन यूपी’ लांच करने जा रहे हैं।

क्या जाट-मुसलमान पॉलिटिक्स साधने की कोशिश

अगले साल यूपी विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत लगातार कहते आ रहे हैं कि किसान इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को जमकर सबक सिखाएंगे। आज पूरे देश भर में घूम-घूमकर महापंचायत और रैलियां करने वाले राकेश टिकैत कभी बीजेपी के कट्टर समर्थक हुआ करते थे। राकेश टिकैत के भाई और भारतीय किसान यूनियन के अध्‍यक्ष नरेश टिकैत कई मौकों पर कह चुके हैं कि राष्‍ट्रीय लोकदल का साथ छोड़कर किसानों ने बड़ी गलती की। दरअसल ऐसा 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ही हो गया था। दंगों के दौरान यूपी में अखिलेश यादव की सपा सरकार रही और जाटों को लगने लगा कि अजीत सिंह ने मुश्किल दिनों में खुलकर साथ नहीं दिया। उनको सबक सिखाने के मकसद से वे बीजेपी के साथ हो लिए।

  • इससे पहले 7 सितंबर 2013 को जिले के नंगला मंदौड़ गांव में हुई ऐसी ही एक महापंचायत हुई थी। इसके बाद हुए दंगों ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ऐसी हवा बहाई थी जिसने भाजपा के लिए सत्ता की राह आसान कर दी थी।
  • दंगों की इसी हवा को भांपते हुए तब भाजपा के PM कैंडिडेट नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान के आगाज के लिए वेस्ट यूपी को चुना था। मोदी ने 2 फरवरी 2014 को मेरठ में विजय शंखनाद रैली में पूरे वेस्ट यूपी से भीड़ जुटाई। उस वक्त मोदी के भाषण के केंद्र में सबसे बड़ा मुददा मुजफ्फरनगर दंगा ही था।
  • 8 साल बाद यह वही सितंबर का महीना है। धरती भी मुजफ्फरनगर की है। इस बार महापंचायत की तारीख 7 नहीं बल्कि 5 सितम्बर ।
  • 2017 के चुनाव में वेस्ट यूपी की 90 में से 72 असेंबली सीटें बीजेपी ने जीती थी। और 2019 में सभी 14 parliamentary seats बीजेपी के खाते में आईं।.

जाटमुस्लिम के बीच दूरी का बीजेपी ने उठाया था फायदापश्चिमी यूपी में एक दौर ऐसा था जब जाट और मुस्लिम समुदाय बेहद करीब थे। लेकिन वेस्ट यूपी की इस शुगर बेल्ट में 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद दोनों समुदायों के बीच कड़वाहट आ गई। इसके बाद हुए चुनावों में बीजेपी को सीधा फायदा मिला। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने वेस्ट यूपी में आरएलडी की जाट-मुस्लिम केमिस्ट्री को तोड़ते हुए नया समीकरण साधा। यह सिलसिला 2019 लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा।

किसानों के मुद्दे पर अब एकजुट हो रहे जाट-मुस्लिम…राजनीतिक जानकारों का कहना है कि किसानों के मुद्दे पर जाट और मुस्लिम समुदाय अब एकजुट हो रहे हैं। अगर वे एक बार फिर एक हुए तो भारतीय जनता पार्टी को काफी नुकसान हो सकता है। 2017 चुनावों में जाट और मुस्लिमों के बीच दूरी का फायदा सबसे ज्‍यादा बीजेपी को ही मिला था। मुजफ्फनगर महापंचायत में काफी संख्‍या में मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल हुए हैं, जोकि राकेश टिकैत के लिए एक अच्‍छा संकेत है।

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