महाकवि रविंद्र नाथ टैगोर जिसकी लेखनी 3 देशों के लिए सर्वोच्च गान के रुप में माना गया है। वो कवि जिनको आज भी उतनी ख्याती हासिल है जितनी ख्याती उनकों जिंदा रहते मिला करती थी। वो महान कवि जिसको जन जन का कवि कहा जाता है, वो बहुमुखी प्रतिभा का धनी थे. उनकी लेखनी जो सीधे सामाजिक कुठाराघात पर चोट किया करती थी। महाकवी रवींद्रनाथ टैगोर जी, भारत की महान विभूतियों में से एक हैं। टैगोर अकेले ऐसे कवि हैं, जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं है। टैगोर भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के अलावा बांग्लादेश के राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ के भी रचियता हैं।

आनंद समरकून ने नमो नमो माता’ गीत 1940 में लिखा और उन्होने इस गाने का संगीत भी तैयार किया जो की काफी हद तक रविंद्रनाथ टैगोर से प्रभावित मानी गई थी. हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि रविंद्र नाथ टैगोर ने इसके गीत का संगीत तैयार किया था। वही कुछ लोगों का ऐसा दावा है कि टैगोर ने इस गीत को लिखा था. इसी गाने को 1951 में आधिकारिक रूप से श्रीलंका के राष्ट्रगान के रूप में मान्यता दी गई लेकिन इस गीत को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किए जाने के बाद विवाद होने पर 1961 में ‘नमो नमो माता’ की शुरुआती लाइन में बदलाव कर दिया गया और इसे ‘श्रीलंका माता’ कर दिया गया.

महाकवि रविंद्रनाथ टैगोर ने कालजयी रचना गीतांजलि को भी लिखा था जिसके बाद उन्हे महाकवी कहा जाने लगा। साल 1913 में उनको साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिला था। इस पुरस्कार को जीतने वाले वो पहले गैर-यूरोपीय और पहले एशियाई थे.

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