Amavasya Vrat Katha: हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मार्गशीर्ष अमावस्या मनाई जाती है। मार्गशीर्ष के महीने की अमावस्या इस बार 23 नवंबर बुधवार के दिन है। इस समय अमावस्या व्रत की कथा का श्रवण करते हैं तो अखंड और सुख की प्राप्ति होती है। इस दिन दान पुण्य व्रत और पूजा पाठ करने से लाभ प्राप्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और उसके बाद दान करने का बड़ा ही विशेष महत्व है। तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ कृष्ण कुमार भार्गव ने अमावस्या की व्रत कथा के बारे में बताया है। आइए जानते हैं कि इस की व्रत कथा क्या है।

अमावस्या की व्रत कथा

ज्योतिष आचार्य ने अमावस्या कथा बताते हुए कहा कि एक नगर में गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था। उसके घर एक बेटी थी जो बहुत ही सुंदर थी‌। लेकिन उसका विवाह नहीं हो रहा था। एक दिन एक साधु उनके घर आए और उस लड़की की सेवा से काफी प्रसन्न हुए। साधु ने प्रसन्न होकर लड़की का हाथ देखा और बताया कि उसके हाथ में विवाह रेखा नहीं है। साधु ने बताया कि एक गांव में सोना धोबन है। यदि कन्या उसकी सेवा करें तो वह इसके विवाह के समय अपनी मांग का सिंदूर इस बेटी को लगा दे तो इसका वैधव्य योग दूर हो जाएगा।

सोना धोबन के घर काम करके आती कन्या

साधु के ऐसा कहने पर ब्राह्मण अपनी बेटी को उस धोबन की सेवा करने के लिए कहता है। पिता के कहे अनुसार कन्या रोज सुबह सोना धोबन के घर जाती और उसके घर की साफ सफाई के साथ-साथ पूरे काम करके वापस घर लौटती। सोना धोबन ने अपनी बहू से कहा कि आजकल तुम बहुत जल्दी घर का काम कर लेती हो, पता ही नहीं चलता। तब बहू ने कहा कि वह कोई काम नहीं करती। पता नहीं कौन यह सारे काम करता है। जब अगले दिन सास और बहू ने निगरानी रखी तो काफी दिनों बाद सोना धोबन ने कन्या को पकड़ लिया और उससे पूछा कि तुम इतने दिनों से यहां सब ये काम क्यों कर रही हो।

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कन्या ने धोबन को बताई सारी बात

सोना धोबन के पूछने पर कन्या ने उनको सारी बात बताई। जिसके बाद सोना धोबन तैयार हो गई। धोबन ने जैसे ही अपनी मांग का सिंदूर कन्या को लगाया तो उसके पति की मृत्यु हो गई‌। उसका पति काफी दिनों से बीमार था। इसके बाद ब्राह्मण परिवार के घर से लौटते समय सोना धोबन ने रास्ते में पीपल के पेड़ को 108 ईंट के टुकड़ों की भंवरी दी और 108 बार परिक्रमा की। उसके बाद उसने पानी पिया। उस दिन धोबन सुबह से निराहार और बिना पानी पिए थी। पीपल की परिक्रमा करते ही उसका पति जीवित हो गया और उस दिन सोमवती अमावस्या थी।

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी महिला इस अमावस्या को पीपल के पेड़ की भंवरी देने की शुरुआत करती है वह हर अमावस्या को भंवरी देती है। इससे सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

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