क्या है कजरी तीज?

कजरी तीज को कजली तीज,बूढ़ी तीज व सातुड़ी तीज भी कहा जाता है।इस दिन सुहागनें व्रत रखकर माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती है और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।इस दिन महिलाएं निमड़ी माता की भी पूजा करती हैं।यह व्रत सुहागन स्त्रियां सुख-समृद्धि की कामना के लिए करती है।यह व्रत निर्जला रखा जाता है।गर्भवती महिलाएं फल और जल ले सकती है।कुवांरी लड़कियाँ अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रख सकती है।गाय की पूजा करने के बाद गाय को आटे की सात लोईयों पर गुड़ और घी रखकर खिलाया जाता है।और व्रत का पारण किया जाता है।

व्रत की तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार,तृतीय तिथि 24 अगस्त को शाम 4 बजकर 5 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानि 25 अगस्त की शाम 4 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी।इस बार कजरी तीज पर धृति योग बन रहा है और ऐसा माना जाता है कि इस योग में किए गए सभी कार्य पूरे होते है।

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पूजा विधि

पूजन करने के लिए मिट्टी व गोबर से दीवार के किनारे तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है।घी और गुड़ से पाल बांधा जाता है।पास ही नीम की टहनी को रोपा जाता है।तालाब जैसी आकृति में कच्चा दूध और जल डाला जाता है।दिया प्रज्वलित किया जाता है।थाली में नींबू,ककड़ी,केला,सेब,सत्तू, रोली,मौली आदि पूजा साम्रगी रखी जाती है।

पूजा कि शुरूआत निमड़ी माता को जल व रोली के छीटें देने से की जाती है।अनामिका उंगली से नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर रोली,मेहंदी से 13 बिंदिया लगाई जाती है।साथ ही काजल की 13 बिंदियां तर्जनी उंगली से लगाई जाती है।

नीमड़ी माता को मोली चढ़ाई जाती है और उसके बाद मेहंदी,काजल और वस्त्र भी चढ़ाएं जाते है।जो भी चीजें अर्पित की जाती है उसकी प्रतिबिंब तालाब के दूध और जल में देखा जाता है।गहनों और साड़ी का प्रतिबिंब भी देखा जाता है।

कजरी तीज पर संध्या में पूजा करने के बाद च्रद्रमा को अर्ध्य भी दिया जाता है।उन्हें भी रोली,अक्षत और मौली अर्पित की जाती है।चंद्रमा को अर्ध्य देते हुए अपने स्थान पर परिक्रमा करें।

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