Corona Impact: कोरोना से पीड़ित लोगों को कई तरह की शारीरिक परेशानी का सामना तो करना पड़ ही रहा है इसके साथ ही लोग मानसिक रोगों के भी शिकार हो रहे हैं। जी हां द लैंसेट साइकेट्रिक जर्नल में प्रकाशित स्टडी के अनुसार अन्य श्वसन संक्रमणों की तुलना में कोरोना संक्रमित मरीजों में 2 साल बाद भी मनोभ्राम और मिर्गी जैसे न्यूरोलॉजिकल और मनरोग स्थितियों का खतरा अधिक है।

स्टडी में पाया गया है कि 1 दशमलव 28 मिलियन से अधिक कोरोना पीड़ितों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड को शामिल किया गया है लैंसेट की स्टडी में भारत सहित 8 देशों के मरीजों का डाटा शामिल है। यूएसए, आस्ट्रेलिया, यूके, स्पेन,बुलगारिया मलेशिया और ताइवान शामिल है।

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ब्रेन फॉग, मनोभ्रम, मिर्गी का खतरा बढ़ा

कोरोना से पीड़ित मरीजों में ब्रेन फोग मनोभ्रम, मानसिक विकार और मिर्गी के दौरे का खतरा 2 साल की अवधि के बाद भी बढ़ा हुआ पाया गया है। स्टडी के अनुसार 18 से 64 वर्ष के व्यस्त जो 2 साल पहले कोरोना से संक्रमित थे उनमें ब्रेन फोग और मांसपेशियों की बीमारी का जोखिम उन लोगों की तुलना में अधिक था जिन्हें 2 साल पहले तक सांसो से संबंधित अन्य बीमारियां थी। 65 वर्ष और उससे अधिक आयु मरीजों में ‘ब्रेन फॉग’, मनोभ्रम और मानसिक विकार की घटना अधिक थी।


मरीजों में मूड डिसऑर्डर और अवसाद के मामले शुरुआत में बढ़े, लेकिन एक से 2 महीने के बाद वो ठीक हो गए। महामारी के अलग-अलग लहर में कोरोना से संक्रमित हुए रोगियों के रिकॉर्ड की तुलना, अल्फा, डेल्टा और ओमिक्रोन वैरीअंट के प्रभाव से भी की गई अध्ययन में पाया गया है कि व्यस्को में अवसाद या चिंता का खतरा कोविड का इलाज शुरू होते ही बढ़ गया, लेकिन बाद में उसे कमी आ गई।

बच्चों में खतरा कम देखा गया

स्टडी में व्यस्त को की तुलना में बच्चों में कोरोना के बाद अधिकांश न्यूरोलॉजिकल और मन रोग की संभावना कम पाई गई थी और उन्हें अन्य श्वसन संक्रमण वाले बच्चों की तुलना में चिंता या अवसाद का अधिक जोखिम नहीं था।डेल्टा संक्रमण में चिंता, ब्रेन फॉग, मिर्गी या दौरे, और स्ट्रोक का खतरा ज्यादा था।

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