उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में कथित रूप से मंत्री के बेटे द्वारा कर से किसानों को कुचलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए, सुनवाई के फैसला किया है। इससे पहले 2 वकीलों ने सीजेआई को पत्र लिखकर इस हिंसा की न्यायिक जांच की गुहार लगाई थी। उधर, वकीलों के पत्र लिखे जाने व सुप्रीम कोर्ट के स्वतः संज्ञान लेने से ऐसा प्रतीत होने लगा है कि, इस मामले की न्यायिक जांच होगी।

कैसे होती है न्यायिक जांच
न्यायिक जांच की आशंका के बीच, यह जानना बेहद जरूरी है कि, आखिर ये जांच होती कैसे है? यह जांच सीबीआई और पुलिस की जांच से अलग कैसे होती है। आखिर इस जांच को इतना भरोसेमंद क्यों माना जाता है? इसमें कौन कौन लोग शामिल होंगे?

क्यों होती है न्यायिक जांच
इस प्रकार की जांच गंभीर आपराधिक घटनाओं, साम्प्रदायिक दंगे, मंत्री या बड़े अफसर के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में मुख्य रूप से इस प्रकार की जांच के लिए पीड़ित, जनता, वकील या विपक्षी या कभी कभी आरोपी भी जांच की मांग करते हैं। न्यायिक जांच को निष्पक्ष और सटीक माना जाता है।

कौन करता है जांच
देश के कानून के मुताबिक न्यायिक जांच जज करते हैं। इनमे जिला न्यायाधीश, जिला अदालत, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का कोई वर्तमान या अवकाश प्राप्त जज शामिल होते हैं। अगर किसी घटना में जांच की मांग की जाती है तो अदालत मामले की जांच वर्तमान न्यायाधीश या फिर किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को दे देती है।

सरकार भी करती है सिफारिश
कई बार मामला गंभीर न होने के बावजूद भी संसद या विधानसभा में उठाए गए किसी बड़े संगीन मुद्दे को शांत करने की खातिर सरकारें खुद ही जांच की सिफारिश कर देती है। इसपर सरकार को विपक्ष को जवाब देना आसान रहता है कि, जांच के बाद सबकुछ साफ होगा।

दरअसल, पुलिसवालों पर जांच को प्रभावित करने का आरोप हमेशा लगते रहा है। इस तरह का आरोप सीबीआई के ऊपर भी लग चुका है, लेकिन न्यायिक जांच को लेकर अब तक ऐसी बात सामने नहीं आई है। न्यायिक जांच कोर्ट अपनी देखरेख में करवाता है।

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