सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक सुनवाई में इस बात को सिरे से खारिज कर दिया है कि बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों में स्किन टू स्किन कांटेक्ट होना जरूरी है। बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक आदेश जारी कर कहा था कि  यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए स्किन टू स्किन कांटेक्ट होना आवश्यक था। अब सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को खारिज कर दिया है। दरअसल बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अगर किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को कपड़े के ऊपर से छूने को यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा।

कपड़ों के ऊपर से भी निजी अंगों को छूना यौन उत्पीड़न-SC

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेरीवाला ने पॉक्सो (POCSO) एक्ट का हवाला देते हुए कहा था कि इस कानून के तहत अगर स्किन-टू-स्किन कांटेक्ट नहीं हुआ तो ये यौन उत्पीड़न के मामले में नहीं आता है। इसलिए अपराध को यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है, लेकिन यह आईपीसी की धारा 354 के तहत एक महिला की शील भंग करने का अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे मामलों में यौन आशय महत्वपूर्ण है और इसे अधिनियम के दायरे से दूर नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून का उद्देश्य अपराधी को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता।

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भारत के महान्यायवादी, राष्ट्रीय महिला आयोग और महाराष्ट्र राज्य ने आदेश को दी थी चुनौती

गौरतलब है कि मामला दिसंबर 2016 का है, जब 39 साल के आरोपी ने 12 साल की बच्ची को खाने के लिए कुछ देने का झांसा दिया था। लड़की की मां द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के मुताबिक, शख्स ने लड़की का ब्रेस्ट दबाया और उसकी सलवार निकालने की कोशिश की। मां को लड़की आदमी के घर में मिली थी। न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि हमने माना है कि जब विधायिका ने स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकती हैं। यह सही है कि अस्पष्टता पैदा करने में अदालतें अति उत्साही नहीं हो सकती हैं।बता दें कि भारत के महान्यायवादी, राष्ट्रीय महिला आयोग और महाराष्ट्र राज्य ने मिलकर हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। आज कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।

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