अक्सर हमारे भारतीय समाज में पति को ऊंचा स्थान दिया गया है। समाज में जितने बड़े बुजुर्ग हैं उन्होंने हमेशा से ही पति को परमेश्वर का स्थान देने की ही वकालत करते हैं। भारतीय इस बात से पूरी तरह रिया काफी हद तक सहमत हैं कि पत्नी को हमेशा ही अपने पति का कहा मानना चाहिए। अब एक अमेरिकी थिंक टैंक के एक हालिया अध्ययन में इस बात की वकालत की गई है।

प्यू रिसर्च सेंटर की ये रिपोर्ट बुधवार को जारी की गई है। इसमें इस पर गौर किया गया है कि किस तरह से भारतीय घर और समाज में लैंगिक भूमिकाओं को कहीं अधिक सामान्य रूप से देखते हैं। बता दें की ये रिपोर्ट 29,999 भारतीय व्यास को के बीच 2019 के अंत से लेकर 2020 की शुरूआत तक किए गए अध्ययन पर आधारित है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय व्यास को ने तकरीबन सार्वभौम रूप से कहा कि महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार होना जरूरी है। हालांकि कुछ ऐसी परिचित लगता है कि पुरुषों को वरीयता मिलनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि करीब 80% इस विचार से सहमत हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 10 में से नौ भारतीय पूरी तरह या काफी हद तक इस बात से सहमत हैं कि पत्नी को हमेशा ही अपने पति का कहना मानना चाहिए। इसमें कहा गया है कि हर परिस्थिति में पत्नी को पति का कहा मानना चाहिए। इस विचार से ज्यादातर भारतीय महिलाओं ने सहमति जताई हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जैसे नेताओं का जिक्र करते हुए इसमें कहा गया है कि भारतीयों ने राजनेता के तौर पर महिलाओं को व्यापक स्तर पर स्वीकार किया है।

अध्ययन के मुताबिक ज्यादातर पुरुषों ने कहा कि महिला और पुरुष समान रूप से अच्छे नेता होते हैं वहीं से एक चौथाई भारतीयों ने कहा कि पुरुषों में महिलाओं की तुलना में बेहतर नेता बनने की प्रवृत्ति है।

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि ज्यादातर भारतीयों का कहना है कि पुरुष और महिलाओं को कुछ पारिवारिक जिम्मेदारी साझा करनी चाहिए। वहीं कई लोग अभी परंपरागत लैंगिक भूमिकाओं का समर्थन करते हैं। जहां तक बच्चों की बात है भारतीय बारे में एक राय रखते हैं कि परिवार में कम से कम एक बेटा और एक बेटी होनी चाहिए।

ज्यादातर भारतीयों यानी की 63 प्रतिशत का कहना है कि माता-पिता की अंत्येष्टि की जिम्मेदारी प्राथमिक रूप से बेटों की होनी चाहिए। मुस्लिम में 74 प्रतिशत, जैन 67 प्रतिशत और हिंदू में 63 प्रतिशत लोगों का कहना है कि माता-पिता के अंतिम संस्कार की प्राथमिक जिम्मेदारी बेटों की होनी चाहिए।

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