कर्नाटक में हिजाब से जुड़ा विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। दरअसल सोमवार को भी जब उच्च न्यायालय में भी इस मामले से संबंधित सुनवाई की गई, तो कर्नाटक सरकार ने कहा कि “हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और इसे शैक्षणिक संस्थानों से बाहर रखा जाना चाहिए। जानकारी के लिए बता दें कि इस पूरे मामले पर पिछले कई दिनों से सुनवाई जारी है और अब अगली सुनवाई मंगलवार ढाई बजे फिर से शुरू होगी।
इस पूरे मामले पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ से राज्य के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नावडगी ने अपने वक्तव्य में कहा कि “हमारा यह रुख है कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक परंपरा नहीं है। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि हमें अपने धार्मिक निर्देशों को शैक्षणिक संस्थानों से बाहर रख देना चाहिए।” मामले की सुनवाई करते हुए महाधिवक्ता ने और भी कई तर्क प्रस्तुत किए सिर्फ यही नहीं इस बीच अदालत ने भी एक सीधा सवाल पूछा।
महाधिवक्ता ने रखे 3 तर्क
बसवराज मुंबई सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता ने इस मामले से जुड़े कई तर्क और प्रस्तुत किए सिर्फ यही नहीं अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अदालत में कहा कि “यह निर्धारित करने के लिए तीन टेस्ट है कि क्या कोई प्रथा आवश्यक धार्मिक प्रथा है। क्या यह विश्वास का हिस्सा है? क्या यह प्रथा उस धर्म के लिए मौलिक है? यदि उस प्रथा का पालन नहीं किया जाता है, तो क्या धर्म का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा?”
हिजाब से जुड़ा एक सीधा सवाल मुख्य न्यायाधीश ने भी अदालत में पेश किया। उन्होंने पूछा कि “आप ने दलील दी है कि सरकार का आदेश नुकसान नहीं पहुंचाएगा और राज्य सरकार ने हिजाब को प्रतिबंधित नहीं किया है, तथा ना ही इस पर कोई पाबंदी लगाई है। सरकारी आदेश में कहा गया है कि छात्राओं को निर्धारित पोशाक पहनना चाहिए। आपका क्या रुख है? हिजाब को शैक्षणिक संस्थानों में अनुमति दी जा सकती है या नहीं? सरकारी आदेश संस्थानों को यूनिफॉर्म तय करने की पूरी स्वायत्तता देता है। कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की प्रस्तावना एक धर्म निरपेक्ष वातावरण को बढ़ावा देना है।”
आखिर क्या है हिजाब विवाद?
जानकारी के लिए बता दें कि यह हिजाब विवाद तब शुरू हुआ था, जब राज्य के उडुपी में कॉलेज के छात्र- छात्राओं को हिजाब पहनकर प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी। यह 6 छात्राएं कैंपस में आयोजित फ्रंट ऑफ इंडिया के एक संवाददाता सम्मेलन में शामिल होने कैंपस पहुंची थी, सिर्फ यही नहीं छात्राओं का ऐसा कहना है कि उन्होंने 4 दिन पहले इस संवाददाता सम्मेलन में शामिल होने के लिए प्रचार्या से हिजाब पहनकर कक्षा में उपस्थित होने की अनुमति मांगी थी, परंतु उन्हें अनुमति देने से इंकार कर दिया गया।
कॉलेज के प्राचार्य ने भी अपनी सफाई में कहा है कि अब तक छात्राएं हिजाब पहनकर परिसर में पहुंचती थी, लेकिन कक्षाओं में जाने से पहले वह अपने हिजाब हटा देती थी। अपने वक्तव्य में प्राचार्य ने कहा कि “संस्थान के हिजाब पहनने के बारे में कोई व्यवस्था नहीं है, क्योंकि पिछले 35 साल से कक्षा में कोई छात्रा हिजाब नहीं पहनती। यह मांग करने वाली छात्राओं को कुछ बाहरी तत्वों का समर्थन है।”
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