संसद के मानसून सत्र की शुरूआत के बाद यह तीसरा हफ्ता है जब संसद नहीं चल रहा है। पेगासस मुद्दे को लेकर विपक्ष अपने कड़े तेवर बनाए हुए है जबकि सरकार अपने रुख पर अड़ी हुई है। लगातार विपक्ष के हंगामे के कारण सदन के संचालन में बाधा पहुंच रही है। संसद का सत्र सुचारु रुप से नहीं चलने से विधायी कार्यों का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। दूसरे दलों की राय को अहमियत दिए बिना और चर्चा कराए बिना सरकार बिना बहस के कई अहम विधेयक मिनटों में पास करा रही है। ऐसा लग रहा है मानो विधेयक पास कराने की महज औपचारिकता पूरी की जा रही है।

संसद में घमासान, जनता का कितना नुकसान

  • करदाताओं के 133 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है
  • अब तक संसद में संभावित 107 घंटों में से केवल 18 घंटे (16.8 प्रतिशत) काम हुआ।
  • सरकारी सूत्रों ने बताया, 19 जुलाई से शुरू हुए और 13 अगस्त को समाप्त होने वाले सत्र में अब तक [ 30 जुलाई] 89 घंटे बर्बाद हो चुके हैं।
  • लोकसभा अपने संभावित 54 घंटों में से केवल सात घंटे ही चल सकी। लोकसभा निर्धारित समय के 13 प्रतिशत से भी कम समय के लिए काम हो पाया।
  • राज्यसभा संभावित 53 घंटों में से 11 घंटे ही चल पाई है। राज्यसभा अपने निर्धारित समय से लगभग 21 प्रतिशत चली।

कब-कब होते हैं संसद के सत्र

भारत की संसद के तीन सत्र होते है जिनमे लगभग पूरे वर्ष में 100 दिन संसद में कार्य होता है | संसद चलाने का कुल बजट प्रतिवर्ष लगभग रुपए 600 करोड़ है; इसका मतलब यह है, प्रतिदिन की कार्यवाही पर लगभग रुपए 6 करोड़ खर्च हो जाते हैं।

एक साल में संसद के सत्र का आयोजन 3 बार किया जाता है

1. बजट सत्र – फरवरी से मई तक

2. मानसून सत्र – जुलाई से सितंबर तक

3. शीतकालीन सत्र – नवंबर से दिसंबर तक

2018 : 190 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च

2016 : 144 करोड़ रुपए का नुकसान

संसदीय आंकड़ों की बात करें तो 2016 के शीतकालीन सत्र के दौरान 92 घंटे व्यवधान की वजह से बर्बाद हो गए थे। इस दौरान 144 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। जिसमें 138 करोड़ संसद चलाने पर और 6 करोड़ सांसदों के वेतन, भत्ते और आवास पर खर्च हुए।

2009-2014 यूपीए-द्वितीय … 15वीं लोकसभा की उत्पादकता (2009-2014 UPA-II… productivity of the 15th Lok Sabha)

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के रिकॉर्ड के मुताबिक, 15वीं लोकसभा यानी 2009-2014 यूपीए-2 की उत्पादकता पिछले 50 सालों में सबसे खराब थी। “संसद को बार-बार बाधित किया गया और कानून और सरकार की निगरानी पर खर्च किए गए समय में गिरावट देखी गई। पीआरएस के अनुसार, 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला ब्लॉक, खुदरा क्षेत्र में एफडीआई, तेलंगाना की मांग और राष्ट्रमंडल खेलों के आवंटन में व्यवधान 15वीं लोकसभा के मुख्य आकर्षण थे। पीआरएस रिपोर्ट में कहा गया है, “15वीं लोकसभा के दौरान, संसदीय कार्यवाही में बार-बार व्यवधान के कारण लोकसभा में 61 फीसदी और राज्यसभा में 66 फीसदी काम हुआ है

27 जुलाई 2021: संसद सही ढंग से चलने नहीं दे रहा विपक्ष, यह लोकतंत्र और नागरिकों का अपमान’- पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने (27 जुलाई 2021) संसद में लगातार हंगामा करने और कार्यवाही में व्यवधान डालने के लिए कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों को आड़े हाथों लिया था और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसदों से विपक्ष के इस रवैये की जनता के समक्ष पोल खोलने की अपील की थी.

जब भाजपा विपक्ष में थी

आज विपक्ष के विरोध को हंगामा कहने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कांग्रेस के शासनकाल में इसी तरह विरोध करती थी। तब उसे अपनी भूमिका सही नज़र आती है, लेकिन आज जब कांग्रेस और अन्य दल उसकी नीतियों, कार्रवाइयों का विरोध करते हैं तो उसे सदन का वक़्त बर्बाद करना कहा जाता है।

30 जनवरी, 2011 – तत्कालीन राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली को रांची में यह कहते हुए उद्धृत किया गया था – “संसद का काम चर्चा करना है। लेकिन कई बार मुद्दों को नजरअंदाज करने के लिए संसद का सहारा लिया जाता है और ऐसे में संसद में बाधा डालना लोकतंत्र के पक्ष में होता है. इसलिए संसदीय बाधा अलोकतांत्रिक नहीं है।”

26 अगस्त 2012- संसद के बाहर जेटली – “ऐसे अवसर होते हैं जब संसद में बाधा देश को अधिक लाभ देती है … हमारी रणनीति हमें सरकार को जवाबदेह ठहराए बिना (बहस के लिए) संसद का उपयोग करने की अनुमति नहीं देती है … हम नहीं करते हैं सरकार को बहस के जरिए बचने का रास्ता देना चाहते हैं।”

7 सितंबर, 2012 – संसद के बार-बार बाधित होने और धुले हुए मानसून सत्र के बारे में, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था – “संसद को कार्य करने की अनुमति नहीं देना भी किसी अन्य रूप की तरह लोकतंत्र का एक रूप है।”

  • यूपीए 1 के शासन के दौरान अरुण जेटली और सुषमा स्वराज ने तेल घोटाले को लेकर हफ़्तों तक संसद नहीं चलने दी थी।
  • यूपीए 2 के दौरान भाजपा ने संसद में हंगामे और दवाब की राजनीति चलाकर कई मंत्रियों जैसे दयानिधि मारन, राजा, शशि थरूर , और पी के बंसल को इस्तीफ़ा देने पर मजबूर किया था।
  • कांग्रेस शासन में नटवर सिंह विदेश मंत्री थे तब उनके उपर लगे आरोपों के चलते भाजपा ने दो हफ़्तों तक सदन नहीं चलने दी थी।

बिल जो बिना बहस के मिनटों में पारित हुए

विधायी कार्यों पर शोध करने वाली संस्था पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च ने मौजूदा मानसून सत्र को लेकर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही का अध्ययन किया है.संस्था का कहना है कि सत्र के पहले दिन यानी 19 जुलाई को विपक्ष के सदस्यों के हंगामे की वजह से दोनों सदनों में न तो ‘शून्य काल’ और न ही ‘प्रश्न काल’ संपन्न हो सका. इसका मतलब है कि ग़ैर-सूचीबद्ध मामलों की चर्चा नहीं हो सकी और न ही सांसद सवाल पूछ सके.

फिर 22 जुलाई को जब दोनों सदनों की कार्यवाही शुरू हुई तो ‘शून्य काल’ तो नहीं हो पाया, अलबत्ता लोकसभा में ‘शून्य काल’ के दौरान सिर्फ़ एक प्रश्न ही लिया जा सका. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार अगले दिन तो राज्यसभा की कार्यवाही चली ही नहीं जबकि लोकसभा में लगभग 200 के आसपास प्राइवेट मेंबर्स बिल सूचीबद्ध थे जिन्हें हंगामे की वजह से पेश नहीं किया जा सका.

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार 19 जुलाई से लेकर 26 जुलाई तक लोकसभा में सिर्फ़ 10 प्रतिशत और राज्यसभा में सिर्फ 26 प्रतिशत कामकाज ही पूरा हो पाया.

सप्ताह के आखिरी दिन यानी 30 जुलाई को लोकसभा की कार्यवाही को हंगामे की वजह से सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया. इस दौरान लोकसभा और राज्य सभा में विधायी कार्य नहीं के बराबर हो पाए. हालांकि सरकार ने इस हंगामे के बीच भी लोकसभा में दो और राज्यसभा में एक बिल पटल पर रखा लेकिन इन बिलों को पारित नहीं कराया जा सका.

कुल मिलकर दोनों सदनों में सात ऐसे बिल थे जो बिना चर्चा के पास हो गए.

मानसून सत्र में ‘नौवहन सहायता विधेयक 2021’, ‘आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक, 2021’, ‘अंतर्देशीय पोत विधेयक 2021′,’फैक्टरिंग विनियमन संशोधन विधेयक 2021’, ‘राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंध संस्थान विधेयक 2021’ और ‘दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) अध्यादेश 2021’ ऐसे सात विधेयक हैं जो बिना बहस के पारित हो गए.

सबसे कम समय दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता संशोधन अध्यादेश, 2021बिल के पारित होने में लगा जो लोकसभा में पेश होने के 5 मिनटों में ही पारित हो गया. इसी तरह अंतर्देशीय पोत विधेयक 2021भी सिर्फ़ 6 मिनटों में पारित हो गया.

फटाफट विधेयक पारित होने से आम आदमी का क्या नुकसान

  • संसद में किसी विधेयक पर कम चर्चा होने का मतलब है संसद में लोकतंत्र का नहीं होना।
  • बहस में विपक्ष के हिस्सा नहीं लेने का मतलब है दूसरे पक्ष का दृष्टिकोण शामिल नहीं होना
  • विधेयक एक बार पारित हो गया और कानून की शक्ल में बदल गया तो इसमें बदलाव लाने में फिर लंबा वक्त लग जाता है। 
  • सांविधानिक दृष्टि से देखा जाए तो इसका असर करोड़ों भारतीयों के भविष्य पर पड़ेगा।

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