Rakesh Tikait ने Owaisi को बताया BJP का ‘चचा जान’, कहा- वो गाली भी देंगे तो केस नहीं होगा

यूपी में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी माहौल गर्म है. ऐसे में नेताओं के बीच जुबानी जंग और तेज हो गई है. इसी बीच ‘अब्बा जान’ शब्द के बाद अब ‘चचा जान’ चर्चा में है. भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने चचा जान शब्द का इस्तेमाल किया है. टिकैत ने एआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को बीजेपी का चचा जान कहा है. दरअसल, टिकैत बागपत (Baghpat) में एक सभा को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान टिकैत ने बीजेपी पर जबरदस्त हमला बोला. टिकैत ने कहा, “बीजेपी के चचा जान असदुद्दीन ओवैसी यूपी आ गए हैं. अगर ओवैसी बीजेपी को गाली भी देंगे तब भी उनके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं होगा. क्योंकि बीजेपी और ओवैसी एक ही टीम है.”

योगी ने किया था अब्बा जानशब्द का इस्तेमाल

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में कुशीनगर में 12 सितंबर को एक रैली के दौरान समाजवादी पार्टी को निशाने पर लिया था. इसी दौरान उन्होंने कहा था कि अब्बाजान कहने वाले गरीबों का सारा राशन हड़प जाते थे. योगी आदित्यनाथ पहले भी समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव पर इसके जरिए वार कर चुके हैं. सीएम योगी के इसी बयान के बाद सियासत गरमा गई है और इसी शब्द के इर्द-गिर्द जुबानी जंग छिड़ रही है. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तत्काल इस बयान की आलोचना करते हुए योगी आदित्यनाथ को उनकी भाषा के संदर्भ में आड़े हाथों लिया तो राजनीतिक गलियारों में भी ऐसी भाषा पर कई सवाल खड़े हुए. लेकिन योगी आदित्यनाथ वहीं नहीं रुके बल्कि इस संबोधन को तो जैसे उन्होंने अपना ‘तकिया कलाम’ बना लिया. विधान परिषद में जब यह मुद्दा उठा, तो उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि ”अब्बाजान शब्द कब से असंसदीय हो गया? सपा को मुस्लिम वोट चाहिए, लेकिन अब्बाजान से परहेज़ है.”

दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ की भाषा पर तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा, “उनकी भाषा इसीलिए बदल गई है क्योंकि उत्तर प्रदेश की जनता अब बदलाव और ख़ुशहाली चाहती है. जिस तरह से काम समाजवादी सरकार में हो रहे थे, उन्हें दोबारा चाहती है.”

राजनीति में संकेत बहुत मायने रखते हैं…क्या सपा के पक्ष में लामबंद हो पाएंगे मुस्लिम?

कहा जाता है कि राजनीति में संकेत बहुत मायने रखते हैं. राजनीति में कोई भी बात यूं ही नहीं बोली जाती है. योगी आदित्यनाथ ने मुलायम सिंह यादव के लिए अब्बाजान शब्द का इस्तेमाल बहुत सोच-विचारकर किया है. उत्तर प्रदेश में फिलहाल जिस तरह की सियासी हवा चल रही है. उसे देखकर अखिलेश यादव का एमवाई समीकरण सबसे मजबूत नजर आता है. यूपी में नई मुस्लिम लीडरशिप खड़ी करने की बात करने वाले एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी से भी सपा के इस वोट बैंक पर असर पड़ता नहीं दिख रहा है. लेकिन, सीएम योगी ने अब्बाजान के सहारे सपा पर लगने वाले मुस्लिमपरस्त होने के आरोपों को और हवा दे दी है. अखिलेश यादव इस शब्द पर जितना रिएक्शन देंगे, भाजपा के लिए उन्हें घेरना उतना ही आसान होता जाएगा.

जहां तक ध्रुवीकरण का सवाल है तो जानकारों के मुताबिक, बीजेपी चुनाव तक ऐसी कोशिश करती रहेगी और चुनावों की दिशा को ध्रुवीकरण की ओर ज़रूर मोड़ेगी.

  • अब्बाजान जैसे योगी आदित्यनाथ के बयान की तुलना राजनीतिक जगत में साल 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण से की जा रही है जिसमें उन्होंने कहा था, “गांव में अगर क़ब्रिस्तान बनता है तो गांव में श्मशान भी बनना चाहिए. अगर रमज़ान में बिजली मिलती है, तो दीवाली पर भी बिजली मिलनी चाहिए. भेदभाव नहीं होना चाहिए.”

सॉफ्ट हिंदुत्व राजनीतिक दलों की कमजोर नसमुलायम सिंह यादव के लिए ‘अब्बाजान’ शब्द का इस्तेमाल करने के साथ योगी आदित्यनाथ ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. भाजपा के एजेंडे में हमेशा से ही हिंदुत्व सबसे आगे रहा है. इसी हिंदुत्व के जरिये लगातार दो बार केंद्र की सत्ता में वापसी करने वाली भाजपा के लिए ये उसका सबसे बड़ा सियासी हथियार है. माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को चुनौती देने वाला सबसे बड़ा सियासी दल सपा ही है. सीएम योगी ने मुलायम सिंह के लिए अब्बाजान का संबोधन देकर सॉफ्ट हिंदुत्व के सहारे मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिशों पर सीधा हमला बोला है. सपा पर मुस्लिमपरस्त होने का आरोप धोने की कवायद में अखिलेश यादव राम मंदिर निर्माण पूरा होने पर सपरिवार दर्शन की बात कर रहे हैं. बीते साल चित्रकूट में कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा के सहारे अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करने वाले सपा प्रमुख सॉफ्ट हिंदुत्व को अपनाने की ओर बढ़ चले हैं. अखिलेश यादव समझ चुके हैं कि यूपी में सत्ता केवल एमवाई समीकरण के सहारे हाथ में नहीं आनी है. कहना गलत नहीं होगा कि ये भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति का ही असर है कि उत्तर प्रदेश के तमाम सियासी दल खामोशी के साथ मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं, सीएम योगी ने अब्बाजान शब्द के सहारे सपा को बैकफुट पर ढकेलने की भरपूर कोशिश की है.

  • बीजेपी जिस तरीक़े से चुनावी मुद्दे को ध्रुवीकरण की ओर मोड़ने की कोशिश कर रही है, विपक्षी दल उनके जाल में उलझते भी दिख रहे हैं. प्रियंका-राहुल के बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं का मंदिर जाना, बहुजन समाज पार्टी की सभाओं में ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष होना और समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव का कई बार ख़ुद को ‘अधिक हिन्दू और धार्मिक’ के रूप में दिखाने की कोशिश को इसी रूप में देखा जा रहा है.

बाबरी विध्वंस के बाद सपा का हुआ मुस्लिम वोट

  • 2002 के विधानसभा चुनावों में सपा को 54 फीसदी मुस्लिम वोट मिला था।
  • 2007 के विधानसभा चुनावों में ये घटकर 45 फीसदी रह गया
  • 2012 के चुनावों में जब पार्टी को सबसे बड़ी जीत मिली, तब यह घटकर 39 फीसदी ही रह गया।
  • 2017 के विधानसभा चुनाव में लगभग 70 फीसदी तक मुस्लिम वोट सपा-कांग्रेस को मिले।

यूपी में 100 सीटों पर नजर लगाए हैं असदुद्दीन ओवैसी

ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी यूपी में अपना सियासी आधार बढ़ाने के लिए 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. ओवैसी की नजर भले ही सूबे की मुस्लिम बहुल सीटों पर है, लेकिन पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लेकर सीएम योगी के गढ़ गोरखपुर तक में चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है.  यूपी की 75 जिले में से 55 जिलों की सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है, जिनमें से ज्यादातर सीट पश्चिम यूपी की है.पश्चिम यूपी में 60 फीसदी कैंडिडेट और पूर्वांचल में 30 फीसदी होंगे जबकि सेंट्रल यूपी में 10 से 15 सीटों का टारगेट.

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