भुवनेश्वर: कोवैक्सीन और कोविशील्ड की डोज लेने के बाद शरीर में बनने वाली एंटीबॉडीज का स्तर दो और तीन महीने बाद कम हो जाता है। इस बात का खुलासा एक रिसर्च में हुआ है। आईसीएमआर-रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर की स्टडी में दावा किया है कि टीका 2-3 महीने के लिए ही कारगर है। ICMR-क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र (RMRC), भुवनेश्वर की रिसर्च में 614 ऐसे लोगों पर रिसर्च किया गया जिन्होंने हाल ही में वैक्सीन ली थी।। इन प्रतिभागियों में 308 (50.2%) ने कोविशील्ड ली थी जबकि बाकी 306 (49.8%) ने कोवैक्सीन ली थी।
2-3 महीनों के अंदर ही एंटीबॉडी में कमी
अध्ययन में ये पाया गया है कि कोवैक्सीन लेने वाले लोगों के अंदर एंटीबॉडी के स्तर में दो महीने के बाद गिरावट शुरू हुई। जबकि कोविशील्ड के साथ टीकाकरण करने वाले लोगों में गिरावट तीन महीने बाद देखी गई। ICMR-RMRC के वैज्ञानिक डॉ देवदत्त भट्टाचार्य ने कहा कि अध्ययन के लिए 614 लोगों के नमूने लिये गये थे। इन लोगों के नमूनों में केवल 81 नमूनों में ही सफलता मिली।हमने उनके अंदर एंटीबॉडी बनते हुए देखी और छह महीने तक उसे फॉलो किया। अध्ययन में पाया गया कि टीकाकरण के बाद बाकी बचे 533 स्वास्थ्य कर्मियों में एंटीबॉडी में कमी देखी गई।
बूस्टर शॉट की जरुरत बढ़ी
इस स्टडी का उद्देश्य सार्स-सीओवी-2 (कोरोना वायरस) के खिलाफ लगने वाली वैक्सीन की एंटीबॉडी के बारे में जानकारी प्राप्त करना है।इस अध्ययन के बाद ये बात भी सामने आई कि देश में बूस्टर शॉट की जरूरत है क्योंकि वैक्सीन लगने के बाद भी लोगों के शरीर में एंटीबॉडी केवल कुछ ही महीनों के लिए कारगर है। एम्स के महानिदेशक भी बूस्टर शॉट के बारे में बता चुके हैं। दूसरे देशों में बूस्टर शॉट लगना भी शुरू हो चुका है।भट्टाचार्य ने कहा कि बूस्टर शॉट की आवश्यकता है या नहीं (देश की एक महत्वपूर्ण आबादी को दो खुराक के साथ टीकाकरण के बाद) वैज्ञानिक प्रमाण की आवश्यकता है। गौरतलब है कि आरएमआरसी भुवनेश्वर, इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस) भुवनेश्वर, एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, बरहामपुर, केआईएमएस भुवनेश्वर, विम्सर बुर्ला और चेस्ट क्लिनिक बेरहामपुर के 24 शोधकर्ताओं ने अध्ययन में हिस्सा लिया है।
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