हिमाचल और उत्तराखंड में हर साल बरसात अपने साथ तबाही ला रही है। हर साल लोगों की जान जा रही है तो करोड़ों की संपत्ति को नुकसान हो रहा है। सरकार और जिला प्रशासन मौके पर दावे तो बहुत करता है लेकिन योजनाएं फाइलों में ही दबी हैं। कई ऐसे इलाके हैं जहां बरसात में हर साल भारी नुकसान हो रहा है। यहां के कई इलाके ऐसे हैं जहां के लोगों को बाढ़ आने पर पलायन करना पड़ता है। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि नुकसान से बचाने के लिए अभी से प्रयास करने होंगे। कुदरत से छेड़छाड़ और विकास के नाम पर अंधाधुंध खनन भी इसका एक कारण है। इस बार बरसात में पहाड़ दरकने से प्रदेश में काफी तबाही मची है। जानमाल का काफी नुकसान हुआ है। पहाड़ ही नहीं, यहां नदियां और नाले भी बरसात में खूब तबाही कर चुके हैं।

भूस्खलन और बाढ़ से अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई

पहाड़ों पर कुदरत की दोहरी मार ने पर्यटन व्यवसाय की कमर तोड़ दी है। पहले कोराेना का कहर और फिर भारी बारिश के कारण भूस्खलन और बाढ़ से अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। देश के दो बड़े पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और हिमाचल में 3700 करोड़ का करोबार ठप हो गया है। 10 हजार से ज्यादा होम स्टे संचालक और होटल business प्रभावित हुए हैं। कई व्यवसायी कर्ज में डूब गए हैं। कई होटल बिकने की कगार पर हैं। दोनों राज्यों में tourism से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लगभग 12.5 लाख लोगों की आमदनी का जरिया लगभग ठप हो गया है। उत्तराखंड में भूस्खलन की वजह से अब भी 298 सड़कें बंद हैं। चारधाम यात्रा के सभी रास्ते भूस्खलन के चलते बंद हुए हैं। बारिश को देखते हुए दोनों राज्यों में बड़े पैमाने पर पर्यटकों ने ऑनलाइन बुकिंग कैंसिल कर दी है। कुल मिलाकर इस बार पर्यटन कारोबार पूरी तरह चौपट हो गए हैं।

हिमाचल: हर साल 1.65 करोड़ सैलानी आते थे, 2021 में 20 लाख से कम

  • पहले हर साल 1.65 करोड़ सैलानी आते थे। कोरोना के बाद 2020 में 32 लाख, 2021 में 20 लाख से भी कम सैलानी आए। भूस्खलन ने आंकड़ा और गिरा दिया।
  • 1700 करोड़ रु. कारोबार हर साल होता है। जोकि दो सालों में 90% डाउन हो गया है।
  • यहां 3350 होटल, 1656 होम स्टे और 222 एडवेंचर साइट हैं।
  • व्यवसाय से जुड़े 4.5 लाख लोग आर्थिक संकट में हैं।

प्रदेश के पर्यावरण को लेकर बराबर अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है हिमाचल के पहाड़ों की बनावट कुछ ऐसी है कि इनमें बरसात में काफी ज्यादा नमी पैदा होती है। ये पहाड़ छोटी-छोटी चट्टानों के टुकड़ों और मिट्टी से बने हैं। बारिश के बाद पहाड़ों में काफी ज्यादा नमी पैदा होते ही यह ढहने लगते हैं। प्रदेश में पहाड़ों को काटकर फोरलेन सड़कों का निर्माण हो रहा है। जिससे बरसात में इनके ढहने खतरा बढ़ जाता है। कालका-शिमला मार्ग में निर्माण के दौरान पहाड़ों के दरकने की समस्या सबसे ज्यादा सामने आई है।

ऐसा ही हाल उत्तराखंड का भी है। करोना की बाद से यहां भी व्यापार में भारी गिरावट आई है। : 92% कमाई चौपट, आठ लाख लोग हुए प्रभावित

  • कोरोना से पहले 2019 में पर्यटन से उत्तराखंड में लगभग 2 हजार करोड़ रु. का कारोबार हुआ था।
  • 60% कमाई चार धाम यात्रा से होती है, जो शुरू नहीं हो पाई।
  • व्यवसाय से जुड़े 8 लाख लोग आर्थिक संकट में हैं।
  • करीब 1500 होटल और 4657 होम स्टे हैं, कोरोना से पहले प्रतिवर्ष 6 करोड़ पर्यटक आते थे। 3.5 करोड़ धार्मिक होते हैं। ये बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड साहिब आते हैं।
  • इस बार 92% कमाई प्रभावित हुई है।

अधिक मार होम स्टे संचालकों पर, कर्ज लेकर बनाए आशियाने सूने पड़े

ज्यादातर लोगों ने लोन लेकर अपने establishments तैयार किए हैं। ऐसे लोगों को 2 साल से किश्तें देना भारी पड़ रहा है। कई व्यवसायी अपनी जेब से कर्मचारियों का वेतन, बिजली, पानी के खर्चे उठा रहे हैं। हालात ये हो गए हैं कि लोग अब इस व्यवसाय को बेचने में लगे हैं। धर्मशाला, मैक्लोडगंज में लगभग 70-80 होटल बिकने को तैयार हैं। यही हालात कुल्लू में भी है। भूस्खलन के बाद ऑनलाइन बुकिंग भी रद्द कर दी गई हैं।

सरकार से कारोबारियों की उम्मीदें…उत्तराखंड, हिमाचल होटल एसोसिएशन की मांग है कि बिजली बिल, हाउस टैक्स माफ किए जाएं। जीएसटी में भी छूट मिले। इसके अलावा लोन की किश्तों में भी रियायत दी जाए। सरकार मांगें मान ले तो व्यवसािययों को काफी राहत मिल जाएगी।

इधर, मरहम की कोशिश, उत्तराखंड सरकार ने 200 करोड़ की राहत घोषित की

उत्तराखंड सरकार ने पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए 200 करोड़ रु. राहत की घोषणा की है। इसमें होम स्टे संचालकों को छह माह तक 2 हजार रुपए प्रति महीने मिलेंगे। यातायात और बोट व्यवसाइयों को 5 से 10 हजार रुपए दिए जाएंगे। वहीं, हिमाचल सरकार ने भी पर्यटन व्यवसायियाें को सस्ते लोन देने की बात कही है।

क्यों गिर रहे हैं हिमाचल-उत्तराखंड के पहाड़

हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ उम्र के हिसाब से युवा है. ये अभी मजबूत हो रहे हैं. ऐसे में इनपर हो रहे विकास कार्यों की वजह से दरारें पड़ती हैं. टूट-फूट होती है. जिससे पहाड़ों का भार संतुलन बिगड़ता है. बारिश के मौसम में या फिर बारिश के बाद इनकी नींव कमजोर हो जाती है और टूटकर गिरने लगते हैं. पहाड़ों पर ज्यादा शहर बनेंगे तो उसकी मिट्टी की फिल्टरेशन क्षमता कम हो जाएगी. ऐसे में तेज बारिश से फ्लैश फ्लड या भूस्खलन की आशंका बढ़ जाती है. पहले जो बारिश पूरे सीजन में होती थी, अब वो कुछ ही दिन में हो जाती है. इसकी वजह से भूस्खलन और पहाड़ों के गिरने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. एक वजह और है. ग्लेशियरों के पिघलने से जो बर्फ, मिट्टी, पत्थर और कीचड़ आता है, वो पहाड़ों और घाटियों की मिट्टी के ऊपरी सतह पर जमा हो जाता है. इनके दबाव से पहाड़ों की मिट्टी कमजोर होती है. फिर धीरे-धीरे ये ही दरक कर गिरने लगता है. हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स, सुरंगों और सड़कों के निर्माण के लिए तेज विस्फोट, ड्रिलिंग आदि से पैदा होने वाली कंपन इन पहाड़ों की ऊपरी सतह और पत्थरों को हिला देती हैं .

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