हरियाणा में किसान केंद्र और राज्य सरकार से नाराज चल रहे हैं. हरियाणा में कृषि क़ानूनों के साथ भाजपा नेताओं के कार्यक्रमों का विरोध कर रहे किसानों पर करनाल में लाठीचार्ज किया गया। इसे लेकर प्रदेशभर में किसानों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचे गया है.

करनाल में शनिवार को किसानों पर हुए लाठीचार्ज की तमाम विपक्षी दलों ने निंदा की है। कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस घटना की निंदा करते हुए हरियाणा की मनोहर सरकार और BJP पर निशाना साधा। हरियाणा के पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा, कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला के अलावा इनेलो नेता अभय चौटाला ने भी इसके लिए हरियाणा सरकार को आड़े हाथों लिया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोशल मीडिया पर की गई पोस्ट में लिखा कि किसान मेहनत कर के खेतों में लहलहाती हुई फसल देते हैं। भाजपा सरकार अपना हक मांगने पर उन्हें लाठी से लहूलुहान करती है। किसानों पर पड़ी एक-एक लाठी भाजपा सरकार के ताबूत में कील का काम करेगी।

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस मामले में ट्वीट किया। राहुल ने लिखा-फिर खून बहाया है किसान का, शर्म से सर झुकाया हिंदुस्तान का।

कृषि क़ानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को 9 महीने पूरे हो चुके हैं. न तो किसान और न ही बीजेपी की सरकार, कोई भी पक्ष पीछे हटने को राजी नहीं हैं. किसान तीन कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं. सरकार कह रही है कि वो किसी हाल में ऐसा नहीं करेगी. इस बीच हरियाणा सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है, जो इस तनातनी को और बढ़ा सकता है. हरियाणा विधानसभा ने ज़मीन अधिग्रहण (Land Acquisition) से जुड़ा बिल 24 अगस्त को पारित किया है.

हरियाणा : ज़मीन अधिग्रहण (Land Acquisition) बिल

. इसका नाम है- भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार (हरियाणा संशोधन), बिल 2021. सीएम मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार का कहना है कि इस बिल के जरिए वह भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को आसान बनाकर विकास परियोजनाओं में तेजी लाना चाहती है. जबकि किसान संगठन और विपक्षी दल इसे किसान विरोधी और पूंजीवादियों को फायदा पहुंचाने वाला बिल बता रहे हैं.

केंद्रीय कानून की काट

इस बिल के प्रावधान कानून बने तो पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (PPP) के लिए जमीन लेने से पहले सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट या जमीन मालिकों की सहमति की ज़रूरत नहीं होगी. यहां तक कि सिंचाई वाली और खेती वाली जमीन को भी एक्वायर किया जा सकेगा. इस बिल के जरिए केंद्र के जमीन अधिग्रहण कानून की सख्त शर्तों को नरम बनाने की कोशिश की जा रही है.

  • 2013 का केंद्रीय भूमि अधिग्रहण कानून कहता है कि किसी भी ज़मीन को PPP परियोजना के लिए मार्क करने से पहले या तो जमीन मालिक की सहमति लेनी होगी या सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट करना होगा.
  • केंद्रीय अधिनियम की शर्तें कहती हैं कि किसी इलाक़े में सरकार को PPP परियोजना शुरू करने से पहले कम से कम 70 प्रतिशत प्रभावित परिवारों की सहमति लेना ज़रूरी है.
  • केंद्र सरकार ने इस तरह के संशोधन करने की 2014 में कोशिश की थी. लेकिन राज्य सभा में मामला अटक गया था. उच्च सदन में बहुमत ना होने की वजह से ये बिल पास नहीं हो सका था. तब सरकार ने इसकी ज़िम्मेदारी राज्यों पर ही डाल दी थी.

ये भी पढ़े : हरियाणा: प्रदर्शनकारी किसानों का सिर फोड़ दो बोलने वाले अधिकारी के बचाव में सीएम खट्टर?

इन प्रोजेक्टों के लिए ली जा सकेगी जमीन

  • हरियाणा सरकार के इस बिल में कई परियोजनाओं को सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट और जमीन मालिकों की सहमति की शर्तों से छूट दी गई है. ये योजनाएं-परियोजनाएं हैं-

ग्राफिक्स इऩ—

  • राष्ट्रीय सुरक्षा या भारत की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाएं
  • विद्युतीकरण, ग्रामीण आधारभूत संरचना
  • किफायती आवास, गरीबों के लिए आवास
  • प्राकृतिक आपदा से विस्थापित लोगों के पुनर्वास की आवास योजना.
  • राज्य सरकार या उसके उपक्रमों द्वारा स्थापित औद्योगिक गलियारे, जिसमें निर्दिष्ट रेलवे लाइनों या सड़कों के दोनों ओर 2 किमी तक की भूमि का अधिग्रहण करना हो.
  • स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित परियोजनाएं
  • पीपीपी परियोजनाएं जिनमें भूमि का स्वामित्व राज्य सरकार के पास हो
  • शहरी मेट्रो और रैपिड रेल परियोजनाएं.

ग्राफिक्स आउट—

कलेक्टर को मिलेंगे नए अधिकार

हरियाणा सरकार ने इस बिल में एक नई धारा 31ए भी जोड़ी है. इसके तहत ज़िले के कलेक्टर को विशेष शक्तियां दी गई हैं. कलेक्टर के पास सभी योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण का मुआवज़ा तय करने का अधिकार होगा. इसके अलावा वह रेल या रोड जैसी परियोजनाओं के लिए तय मुआवज़े का 50 प्रतिशत प्रभावित परिवारों को एकमुश्त देकर मुआवज़े का फ़ुल एंड फ़ाइनल सेटल्मेंट कर सकेगा. आसान शब्दों में बताएं तो अगर आपकी ज़मीन के लिए आपको एक साल में 1 लाख रुपए मिलने थे, तो कलक्टर आपको एकमुश्त 50 हज़ार रुपए मुआवज़ा देकर भरपाई कर सकेगा. इसके बाद आप किसी मुआवज़े के हक़दार नहीं होंगे.

  • इस बिल के कानून बन जाने के बाद अथॉरिटीज के पास एक और बड़ा अधिकार आ जाएगा. अभी किसी अधिग्रहीत जमीन या इमारत को खाली करने के लिए 48 घंटे का नोटिस देना जरूरी होता है. लेकिन नए बिल में ये शर्त भी हटा दी गई है. इसके मुताबिक, कलेक्टर की ओर से मुआवजे की राशि दिए जाने के तुरंत बाद अधिग्रहीत ज़मीन या बिल्डिंग ज़मीन ख़ाली करनी पड़ेगी.

बिल के विरोध में क्या तर्क दिए जा रहे?

  • हरियाणा सरकार के इस बिल का विरोध भी काफी हो रहा है. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस बिल कोकिसान विरोधीकरार दिया है. उसने आरोप लगाया है कि इस बिल से सिर्फ़ बड़े पूंजीपतियों को फ़ायदा पहुंचेगा. विपक्ष का आरोप है कि जमीन मालिकों की अनिवार्य सहमति की शर्त हटाने से सरकार को अधिग्रहण करने की मनमानी ताक़त मिल जाएगी.
  • किसान संगठनों का कहना है कि इस बिल के पास होने के बाद किसान सरकार द्वारा दिए जा रहे मुआवज़े पर अपना विरोध भी नहीं दर्ज करा पाएंगे. सरकार जो भी मुआवज़ा तय करेगी, किसानों को मानना पड़ेगा क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं बचेगा. सरकार उनकी खेती योग्य ज़मीन का भी अधिग्रहण कर सकेगी.

सरकार का क्या कहना है?

  • विपक्ष और किसान संगठनों के आरोपों को हरियाणा सरकार ने खारिज किया है. सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि मुआवजे की राशि में कोई बदलाव नहीं किया गया है. जैसा केंद्रीय कानून में प्रावधान है, उसी के अनुरूप किसानों को मुआवजा मिलेगा. उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कहा कि अधिग्रहण की जाने वाली ज़मीन का मालिकाना हक़ सरकार के पास ही रहेगा. प्राइवेट कंपनियों या कॉरपोर्टेस को उसका मालिकाना हक नहीं दिया जाएगा.

देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel ‘DNP INDIA’ को अभी subscribe करें। आप हमें FACEBOOKTWITTER और INSTAGRAM पर भी फॉलो पर सकते हैं। 

Share.
Exit mobile version