एक अदालती फरमान इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। मद्रास हाई कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि अदालत भगवान को निरीक्षण के लिए पेश करने का आदेश दे सकती है। मद्रास हाई कोर्ट ने तिरुपुर जिले के मंदिर के अधिकारी को मूर्ति को सत्यापित करने के लिए पेश करने का आदेश देने पर एक निचली अदालत की खिंचाई की है।

मामला यह था कि मूलवर मूर्ति चोरी हो गई और इसका पता लगाकर अनुष्ठानों और अगम नियमों का पालन कर उस मूर्ति को पुनः स्थापित किया गया था। निचली अदालत के न्यायाधीश मूर्ति की सत्यता का सत्यापन करने के लिए एक अधिवक्ता नियुक्त कर सकते थे। न्यायमूर्ति सुरेश ने याचिका पर अंतिमआदेश दिया जिसमें कुंभकोणम अदालत के मूर्ति को पेश करने के निर्देश का अनुपालन में अधिकारियों द्वारा मंदिर को मूर्ति से फिर से हटाए जाने के संभावित कदम को चुनौती दी गई थी।

मूर्तिकार दोबारा से कुंभ अभिषेक किया गया। ग्रामीणों समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु इसकी पूजा करते हैं। मूर्ति चोरी होने के बाद पुलिस द्वारा मूर्ति को बरामद किया गया और इस मामले को विशेष अदालत के समक्ष पेश किया गया। बाद में मूर्ति को अधिकारियों के हाथों सौंप दिया गया जिसकी दोबारा से मंदिर में स्थापना की गई।

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मूर्ति चोरी के मामले को लेकर न्यायिक अधिकारी ने 6 जनवरी को मूर्ति निरीक्षण के लिए पेश करने और जांच पूरी करने का निर्देश दिया था। न्यायाधीश ने कल वीरवार को अपने आदेश में कहा कि मूर्ति को हटाने और संबंधित अदालत में पेश करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भक्तों की मान्यता है कि यह मूर्ति उनके लिए भगवान है। भगवान को निरीक्षण के लिए न्यायालय नहीं बुलाया जा सकता क्योंकि वह एक भौतिक वस्तु नहीं है।

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अंजलि शर्मा पिछले 2 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रही हैं। अंजलि ने महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी से अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई की है। फिलहाल अंजलि DNP India Hindi वेबसाइट में कंटेंट राइटर के तौर पर काम कर रही हैं।

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