उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों निषाद जाती चर्चा का विषय है। क्योंकि तमाम राजनीतिक दल ऐसा दावा करती हैं कि उत्तर प्रदेश में केवट जातियों का कुल प्रतिशत 18% है और 18% वोटर एक राजनीतिक दल को कितना फायदा पहुंचाते हैं, यह एक राजनीतिक दल से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। सभी राजनीतिक दल यह जानते हैं कि अगर 18% वोटर एक तरफ आ जाएं तो किसी भी चुनाव के नतीजा को बदल सकते हैं।

लोकसभा चुनाव 2019 से पहले गोरखपुर में हुए उपचुनाव में संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को वहां से चुनाव हराकर इसे साबित भी कर दिया था । लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 में निषाद पार्टी का गठबंधन भारतीय जनता पार्टी के साथ हो गया।

गठबंधन का मुख्य मुद्दा था निषाद जातियों का आरक्षण। लेकिन अब वही आरक्षण भारतीय जनता पार्टी के लिए गले की हड्डी बन गई है। शुक्रवार को लखनऊ के रामाबाई अंबेडकर मैदान में अमित शाह ने निषाद जातियों को संबोधित करने के लिए रैली रखी थी। रैली से पहले सबको उम्मीद थी अमित शाह रैली में निषाद जातियों को आरक्षण देने की बात करेंगे, लेकिन पूरे संबोधन के दौरान अमित शाह ने आरक्षण को लेकर चर्चा नहीं की।

अब निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने भी खुले तौर पर यह कह दिया है कि अगर चुनाव से पहले आरक्षण की बात नहीं की जाती है तो गठबंधन का रुख किधर भी जा सकता है। वहीं अब आरक्षण के मुद्दे पर वीआईपी पार्टी के संस्थापक मुकेश साहनी ने कहा है कि शुक्रवार को आयोजित निषाद पार्टी की रैली में ये सिद्ध हो गया कि डॉक्टर संजय निषाद समाज को ठगने का काम कर रहे हैं। उनकी पार्टी समाज की नहीं बल्कि उनके परिवार की पार्टी है ।

निषाद समाज को आरक्षण दिलाने का झूठा भरोसा देकर रैली में बुलाया गया था लेकिन पूरे रैली के दौरान आरक्षण के मुद्दे पर ” अ ” तक नहीं बोला गया जिससे निषादों में काफी रोष है शनिवार को लखनऊ में पार्टी की बैठक में मुकेश सैनी ने कहा कि आने वाले समय में निषाद समाज इसका जवाब डॉक्टर संजय निषाद को पेश करेगा।

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