भारत और चीन के बीच तनातनी आज नहीं बरसों पुरानी है। अभी भी पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक एलएसी पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने है। भारतीय सेना ने चीन की किसी भी नापाक चाल को ध्वस्त करने के लिए तैयार है। यह बातें हम इसलिए बता रहे हैं क्योंकि आज वह तारीख है जब भारतीय सेनाओं ने चीनी सेनाओं को सबक सिखाया था।

भारतीय सेना ने 18 नवंबर 1962 को रेजांगला मैं ड्रैगन को करारा जवाब देते हुए उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था ।तमाम कोशिशों के बावजूद चीनी सैनिक रेजांगला चौकी पर कब्जा नहीं कर पाए थे।

आज से करीब छह दशक पहले हमारे जवानों ने लद्दाख की 18 हजार फीट ऊंची बियाबान सर्द पहाड़ियों पर अपने रक्त से शौर्य का एक बेमिसाल इतिहास लिखा था।जब जब भारत में वीरो की कथा सुनाई जाएगी ।वीर अहीरों की यह गाथा आंखे नम कर जाएगी । भारत के वीर जवानों ने अपना सर्वोच्च बलिदान करते हुए चीनी सैनिकों को रेजांगला पहुंच पर कब्जा नहीं करने दिया इस युद्ध में कुमाऊ रेजिमेंट के जवानों ने कई चीनी सैनिकों को मार गिराया जवानों ने 303 के राइफल से चीनी सैनिकों को ऐसे घाव दिए जो ड्रैगन को आज भी चुभता है।

मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 13 कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी ने शरीर को जमा देने वाली ठंड चीनी सैनिकों को छठी का दूध याद दिला दिया। इस युद्ध में मेजर शैतान सिंह और 98 भारतीय जवान शहीद हो गए थे। हालांकि, शहादत देने से पहले भारतीय जवानों चीन के 400 सैनिकों को मार गिराया था। चीन तमाम कोशिशों के बाद भी रणनीतिक रूप से अहम इस पोस्ट पर कब्जा नहीं कर पाया था। इस युद्ध में हरियाणा के रेवाड़ी के रहने वाले दो सगे भाई एक ही दिन एक बंकर में शहीद हो गए थे।

जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होलीजब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली… देशभक्ति से ओतप्रोत यह गीत लता मंगेशकर द्वारा रेजांगला के शहीदों को ही समर्पित है। इसकी हर एक पंक्ति रेवाड़ी और अहीरवाल क्षेत्र के उन रणबांकुरों की शौर्य गाथा कहती है, जिन्होंने रेजागंला युद्ध के वक्त 1962 में दीवाली के दिन चीन के साथ मुकाबला करके सबसे ऊंची चोटी पर शहादत की अमर गाथा लिखी। युद्ध में एक ही कंपनी के 114 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। रेवाड़ी में रेजांगला शौर्य स्मारक पर इन वीरों के नाम सम्मान के साथ अंकित हैं।

रेजांगला डे पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह लेह पहुंचे हैं। वे यहां 1962 की जंग में हिस्सा लेने वाले सेना के जवानों को श्रद्धांजलि देंगे। साथ ही इन शहीदों की याद में बने युद्ध स्मारक का लोकार्पण करेंगे।

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