यूपी विधानसभा चुनाव में महज आठ महीने शेष बचे हैं लेकिन बीजेपी के अंदर खलबली मची हुई है। पिछले कुछ दिनों से आरएसएस और बीजेपी के आलाधिकारियों का यूपी दौरा जारी है तो वही बैठकों और मंथन का दौर भी जारी है। लेकिन सवाल है कि बीजेपी के अंदर किस बात की बेचैनी है। क्या यूपी बीजेपी में कुछ बड़ा होने वाला है क्योंकि मौजुदा सियासी हलचल तो यही संकेत दे रहे हैं। इनसबके बीच सियासी अटकलों का बाजार भी गर्म है।आलम ये है कि आरएसएस प्रमुख दत्तात्रेय होसबले कुछ दिन पहले ही लखनऊ का दौरा कर बीजेपी और संघ कार्यकर्ताओं से अलग अलग मुलाकात कर यूपी की राजनीति को गर्मा दिया था । जिसके बाद से बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन से लेकर मंत्रीमंडल विस्तार को लेकर कई खबरे चलने लगी।

मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि यूपी प्रभारी राधामोहन सिंह और बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष का यूपी दौरा ने सबको चौका दिया है। दौरे के दौरान बीएल संतोष ने राज्य के पार्टी पदाधिकारियों और राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों से मुलाकात की इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी राज्य के मौजूदा परिस्थियों और आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर चर्चा की। मंगलवार को भी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और आएसएस के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर राज्य में लोगों की सरकार के प्रति जो राय बनी है उस पर चर्चा करेंगे। गौरतलब है योगी आदित्यनाथ के चार सालों के कार्यकाल के दौरान ऐसा पहली बार होगा जब पार्टी संगठन के पदाधिकारियों, मंत्रियों, से अलग अलग चर्चा कर फीडबैक मांगा जा रहा है।

खबर तो ये भी है कि पार्टी और संगठन में ऑल ईज वेल नहीं है। केंद्रीय नेतृत्व इस दौरों के जरिये डैमेद कंट्रोल में लगा हुआ है। जिसके बाद अब ये आशंका जोर पकड़ने लगी है क्या यूपी सरकार में कुछ बड़ा फेरबदल होने वाला है। बैठक में इस बात पर चर्चा हो रही है कि पार्टी संगठन ठीक काम कर रहा है या नहीं, कार्यकर्ताओं के बीच किसी प्रकार की नारजगी तो नही है। इस दौरान मंत्री भी बैठकों में अपने कामकाज का ब्योरा लेकर पहुच रहे हैं।जाहिर है यूपी विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही समय शेष बचे हैं।लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना महामारी और सरकारी तंत्र की विफलता से लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी है। सरकार के तमाम प्रयासों के बाबजूद चरमरायी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं ने सरकार की पोल खोल दी है।

राज्य में ठाकुर बनाम ब्राह्मण भी एक मुद्दा बना हुआ है।आरोप तो ये भी है कि सरकार में नौकरशाही हावी है। कार्यकर्ताओं की अनदेखी हो रही है। पश्चिमी यूपी में किसानों की नाराजगी भी एक बड़ा मुद्दा है केद्र हो या राज्य सरकार अब तक इसका तोड़ नही निकाल पा रही है।परिणामस्वरूप पंचायत चुनाव में बीजेपी को इन इलाको में करारी हार का सामना करना पड़ा है ।इसके अलावे पिछड़ी जाति के वोटरों ने भी पंचायत चुनावों में बाजेपी से दूरी बना ली है।बीजेपी की कोशिश है कि हर हाल में अपने कोर वोट बैंक को एकजुट रखा जाय।कार्यकर्ताओं की नारजगी दूर किया जाय। सरकार के बाकी बचे कार्यकाल के लिए मंत्रीमंडल में कुछ नए चेहरों को जगह देकर नए सियासी संकेत दिए जाय। इस क्रम में सबसे बड़ा नाम केशव प्रसाद मौर्या का है जिन्हें एक बार फिर से राज्य की कमान सौंपी जा सकती है। ताकि राज्य के ओबीसी मतदाताओं को साधा जा सके। लेकिन इसके लिए योगी मानेंगे या नहीं ये भी एक बड़ा सवाल है। क्योंकि बीजेपी और केशव प्रसाद मौर्या के बीच मतभेद किसी से छिपा नहीं है।

बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये हे कि चुनाव से पहले किसान आंदोलन की धार को कैसे कुंद किया जा सके। पिछले कुछ सालों से जिस तरीके से जाटों ने आरएलडी को छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था उससे बीजेपी को पश्चिमी यूपी में संगठन विस्तार को बल मिला और उसका लाभ लोक सभा और विधानसभा चुनावों में भी मिला। लेकिन इस बार हालात अलग है पश्चिमी यूपी की 71 विधानसभी सीटों पर किसान आंदोलन का प्रभाव पड़ने वाला है। किसान आंदोलन के कारण जाटों का बीजेपी से मोह भंग हुआ है। तो वही आरएलडी और समाजवादी पार्टी की गठजोर के समर्थन में जिस तरीके जाट और मुस्लिम मतदाता बीजेपी के खिलाफ गोलबंदं हो रहे हैं उसने बीजेपी की नींद उड़ा दी हे। जाटों और मसलमान मतदाताओं की जुगलबंदी का असर पंचायत चुनाव में सबने देखा हैं। जिस कारण बीजेपी को पंचायत चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। किसानों की नाराजगी को दूर किए बिना बीजेपी की राज्य में दोबारा वापसी असंभव है। पार्टी आलाकमान को भी इसबात का अंदाजा है। इस संदर्भ में बीजेपी और आरएसएस के आलाअधिकारियों का यूपी दौरा महज संयोग नहीं बल्कि समाधन की ओर बढ़ते कदम की ओर इशारा करता है। समाधान के लिए बीजेपी के पास महज आठ महीने शेष हैं अब आगे आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बीजेपी इन चुनौती से कैसे पार पाती है।
बिभाकर झा

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