एक बार फिर से पराली जलाने के कारण दिल्ली – एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है, सरकार के सभी दावे एक बार फिर धरे के धरे रह गए हैं। पिछले कुछ वक्त में पांच राज्यों के अंदर पराली जलाने की घटना में 50 फीसदी कमी तो आई है लेकिन अभी भी इसपर काबू करने की जरूरत है। पंजाब के अंदर पिछले वर्ष की तुलना में इस साल 37.2 फीसदी पराली जलाने की घटनाएं कम हुई है, तो वहीं दूसरी तरफ हरियाणा में 39.1 प्रतिशत से अधिक पराली जलाई गई है।

उत्तर प्रदेश के अंदर पराली जलाने की घटना में 9.7 फीसदी की कमी आई है, मध्यप्रदेश में 71.4 फीसदी की कमी और राजस्थान में 66 फीसदी की कमी आई है। आपको बता दे पंजाब के अंदर पराली जलाने की घटनाओं में भले कमी आई हो लेकिन अभी भी बाकी राज्यों की तुलना में यहां काफी ज्यादा पराली जलाई जा रही है। इस वित्त वर्ष में पराली जलाने की जगह अन्य विकल्पों को सामने लाने के लिए 700 करोड़ रुपयों का प्रविधान भी किया गया लेकिन फिर भी हालातों में कुछ खास सुधार नहीं आया।

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इंडियन काउंसलिंग आफ एग्रीकल्चर रिसर्च के प्रमुख डॉक्टर टी महापात्र ने बताया कि पराली जलाने वाली घटना का बिल्कुल सटीक और सही आंकड़ा पाने के लिए तीन सेटेलाइट टेर्रा, अक्वा और सुओमी लगातार काम में लगे हैं। आपको बता दे इन सेटेलाइटो में मौजूद हाई रेसोल्यूशन कैमरों की नजर से पराली जलाने की घटना नहीं छुपाई जा सकती। टी महापात्र ने बताया कि हम पराली जलाने की घटनाओं में जितनी कमी की उम्मीद कर रहे थे उतनी कमी नहीं आई है।

सरकारें पराली जलाने से लोगों को रोकने के लिए पिछले कई वर्षों से निरंतर प्रयास कर रही हैं, पराली जलाने की समस्या के निवारण के लिए अब तक 1726.67 करोड़ रुपयों का खर्च हो चुका है लेकिन परिस्थिति वैसी की वैसी है। किसानों को जागरूक करने के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम चलाए, सब्सिडी वाली कई स्कीम लॉन्च की लेकिन परिणाम कुछ खास नहीं निकला।

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