Supertech Twin Towers Demolition: पिछले कई महीनों से नोएडा के ‘सुपरटेक ट्विन टॉवर्स (Apex and the Ceyane towers)’ का ढहाया जाना खबरों में बना हुआ था और आज आखिरकार मात्र कुछ सेकंड्स के अंदर यह गगनचुंबी इमारत जमींदोज कर दी गई। मात्र सेकंड्स की ये कहानी नोएडा, सेक्टर 93 और उसके आसपास के दिल्ली के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिये डेमोलिशन के हफ्तों और महीनों बाद तक गंभीर परेशानियां देने वाला साबित हो सकता है, पर इसपर कोई बड़ी चर्चा कहीं नजर नहीं आती, हर तरफ बस अवैध निर्माण को सबक मिलने की बात हो रही है। क्या आम जनता का स्वास्थ्य इतना बेमतलब हो चुका है? ट्विन टॉवर अवैध रूप से बना, इसका खामियाजा सुपरटेक ने भुगता, लेकिन वहां और आसपास की पब्लिक को बिना किसी गलती के उससे कहीं अधिक का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, उसका क्या?

Delhi Pollution Control Committee (DPCC) की मानें, तो 30 प्रतिशत वायु प्रदूषण सिर्फ कंस्ट्रक्शन से होता है। कंस्ट्रक्शन साइट पर निर्माण और ढहाने की प्रकिया में जो धूल हवा में उड़ती है, वह कई दिनों और हफ्तों तक वहां की हवा में बनी रह सकती है। भारत की कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री सालाना 10 से 12 मिलियन वेस्ट उत्सर्जित करती है। यह एक सामान्य निर्माण की प्रकिया में होने वाला प्रदूषण है। जब ट्विन टॉवर्स जैसी गगनचुंबी इमारत बनी होगी, प्रदूषण की कहानी अलग होगी, लेकिन जब 3700 किलोग्राम बारूद लगाकर इसे गिराया गया, वह कहानी एक झटके में वहां के आसामान में कई टन धूल को हवा में झोंक देने का था। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो इससे 55,000 टन से 80,000 का कचड़ा बनेगा, वह अलग।  

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सबक बिल्डर्स को या सजा आम पब्लिक को?

रिपोर्ट्स के मुताबिक इन टॉवर्स की ऊँचाई 100 मीटर से भी ज्यादा थी, जो कुतुब मीनार से भी कहीं अधिक ऊँची है। इमारत के बनने से इसे गिराये जाने के बीच सुपरटेक और प्रशासन के बीच एक दशक तक कोर्ट में लंबी लड़ाई का इतिहास है और जब आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे अवैध-निर्माण बताकर ढहाने का आदेश दिया, तो माना ये गया कि इससे बिल्डर्स को सबक मिलेगा। व्यावहारिक रूप में, अवैध निर्माण को रोकने की दिशा में बिल्डर्स के लिये यह एक बड़ा कदम साबित भी हो सकता है। करोड़ों की इस बिल्डिंग को ढहाने में करोड़ों का खर्च आया है और यह सब सुपरटेक को अपने खर्च पर करना था, जो किया भी गया। लेकिन इन सबसे अलग जो एक सबसे जरूरी बात इस बिल्डिंग के निर्माण और गिराये जाने से जुड़ा है, वह है इन दोनों प्रकियाओं में होने वाला प्रदूषण।

इसके निर्माण में जितना प्रदूषण हुआ होगा, उससे कहीं ज्यादा इसके ढहाने में हुआ है। जैसा कि सहज ही अनुमान भी लगाया गया था और वीडियो-तस्वीरों में भी दिखा, बिल्डिंग के गिरते ही वहां और उसके आसपास का आसमान धूल के गुबार से पूरी तरह ढंक गया। यह कोई सामान्य धूल नहीं है, इसमें बिल्डिंग का मलबा है, इसके अलावा विस्फोट से पैदा हुआ जहरीला काला धुआं। प्राधिकरण के अनुसार इस धूल के साफ होने में कई हफ्तों का समय लग सकता है। और तब तक? तब तक इस धूल-धुआं भरी हवा और उससे होने वाले नुकसानों को दिल्ली-एनसीआर की आम जनता झेलेगी।

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बढ़ सकती है सांस की बीमारियां

सबसे बड़ी यह है कि डिमोलिशन का साइड-इफेक्ट उस एरिया में रहने वाली पब्लिक के लिये हफ्तों तक असर डालने वाला हो सकता है, लंबे समय तक सांस की परेशानियां दे सकती है। जाहिर तौर पर, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जो धुआं आप सांसों से अपने फेफड़ों में ले रहे हैं, उसका कुप्रभाव तो दिखेगा। ट्विन टॉवर्स में विस्फोट से उठा धूल का यह गुबार सांसों की कई बीमारियों की वजह बन सकता है।अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी, आंखों की समस्याएं यह बढ़ा सकता है, इसमें कोई शक नहीं। अथॉरिटी ने इलाके में रहने वाले लोगों को अगले कम से कम 3-4 दिनों तक धूल से बचने के लिये मास्क लगाकर रहने की सलाह दी है।

याद कीजिये पराली जलाने का समय, जब दिल्ली-नोएडा धुआं-धुआं हो जाता है। कई सिगरेट पीने के बराबर उस धुएं का फेंफड़ों पर असर क्या हुआ है, यह रिपोर्टस में सामने आ चुका है। दिल्ली में इस कारण दौरान सांस की बीमारियां कई गुना बढ़ीं, उसपर बवाल भी हुआ। पर नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक की गलती का इतना बड़ा खामियाजा नोएडा और उससे सटे दिल्ली के हिस्सों में रहने वाली पब्लिक को बिना किसी गलती के भुगतना पड़ेगा, इसपर कोई बहुत बहस दिखाई नहीं दे रही है। बहरहाल, प्रत्यक्ष या अप्रत्क्ष रूप से आम जीवन पर यह कितना असर डालता है, कुछ दिनों में पता चल जायेगा।

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