पेगासस जासूसी कांड पर संसद में चर्चा की मांग, साथ आए 14 विपक्षी दल

पेगासस स्पाईवेयर के जरिए जासूसी कराने के मामले की जांच को लेकर पूरा विपक्ष एकजुट है। राहुल गांधी सरकार से सीधा सवाल कर रहे हैं। 28 को जुलाई सत्र की कार्यवाही से पहले विपक्षी दलों ने एक बैठक की। इस बैठक में 14 राजनीतिक दल शामिल हुए। विपक्ष दलों की बैठक में राहुल गांधी ने कहा कि पेगासस जासूसी कांड को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं करेंगे। इस पर सरकार को जवाब देना ही होगा। बताया जा रहा है कि इसको लेकर 10 दलों की ओर से नोटिस दिया जाएगा, जिस पर राहुल गांधी का भी हस्ताक्षर होगा। अभी तक विपक्ष अलग-अलग मुद्दों पर बंटा हुआ था, लेकिन इस बैठक के बाद एक साथ पेगासस के मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इसे लेकर तीखे तेवर अपनाए हुए हैं, क्योंकि सरकार पर उनके भी फोन की जासूसी कराने के आरोप हैं। वे चाहते हैं कि सरकार संसद में इस पर जवाब दे और देश को बताए कि पेगासस के जरिए भारत में जासूसी कराई गई या नहीं

पेगासस जासूसी कांड की जांच के लिए ममता बनर्जी ने किया आयोग का गठन… पेगासस जासूसी कांड की जांच के लिए पश्चिम बंगाल सरकार ने आयोग का गठन किया है। कोलकाता हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश मदन भीमराव और पूर्व चीफ जस्टिस ज्योतिर्मय भट्टाचार्य आयोग का नेतृत्व करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की अगुवाई में हो पेगासस जासूसी कांड की स्वतंत्र जांच [Jul 27, 2021]

सीनियर जर्नलिस्ट एन राम [द हिंदू अखबार के पूर्व चीफ एडिटर] और शशि कुमार [एशियानेट के फाउंडर] की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि कथित सरकारी एजेंसियों ने जाने-माने जर्नलिस्टों, राजनेताओं आदि का इजराइली स्पाईवेयर पेगासस के जरिए जासूसी की है। उन्होंने कहा कि इस मामले की स्वतंत्र जांच की जरूरत है। याचिका पर आने वाले दिनों में सुनवाई हो सकती है।

SIT जांच की हो चुकी है मांग…22 जुलाई को पेगासस जासूसी कांड की जांच के लिए एसआईटी के गठन की माग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता वकील एमएल शर्मा ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि जासूसी कांड ने भारतीय लोकतंत्र पर हमला किया है और देश की सुरक्षा और जूडिशिरी की स्वतंत्रा का मुद्दा इसमें शामिल है।

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क्या है वो “लॉफ़ुल इंटरसेप्शन” जिसकी दुहाई दे रही है भारत सरकार

केंद्र सरकार ने इस बात का जवाब अब तक नहीं दिया है कि क्या भारत सरकार ने इसराइली कंपनी एनएसओ से पेगासस स्पाईवेयर ख़रीदा या नहीं। इसके उलट सरकार ने संसद के ज़रिए देश भर को बताया है कि “लॉफ़ुल इंटरसेप्शन” या क़ानूनी तरीके से फ़ोन या इंटरनेट की निगरानी या टैपिंग की देश में एक स्थापित प्रक्रिया है जो बरसों से चल रही है। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोमवार 23 जुलाई को संसद में कहा कि भारत में एक स्थापित प्रक्रिया है जिसके माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्य से या किसी भी सार्वजनिक आपातकाल की घटना होने पर या सार्वजनिक सुरक्षा के लिए केंद्र और राज्यों की एजेंसियां इलेक्ट्रॉनिक संचार को इंटरसेप्ट करती हैं।

Ashwini Vaishnaw, Minister of Communications

वैष्णव के अनुसार, भारतीय टेलीग्राफ़ अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69 के प्रावधानों के तहत प्रासंगिक नियमों के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक संचार के वैध इंटसेप्शन के लिए अनुरोध किए जाते हैं, जिनकी अनुमति सक्षम अधिकारी देते हैं। उन्होंने कहा कि आईटी नियम, 2009 के अनुसार ये शक्तियां राज्य सरकारों के सक्षम पदाधिकारी को भी उपलब्ध हैं। वैष्णव ने यह भी कहा है कि केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में समीक्षा समिति के रूप में एक स्थापित निरीक्षण तंत्र है और राज्य सरकारों के मामले में ऐसे मामलों की समीक्षा संबंधित मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली समिति करती है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि क़ानून में किसी भी घटना से प्रतिकूल रूप से प्रभावित लोगों को भी न्याय दिलाने की व्यवस्था है।

भारत में फोन टैपिंग के लिए क्या क्या कानूनी प्रावधान मौजूद है?

कब फोन टैप किया जा सकता है?…जो एजेंसी फोन टैप करना चाहेगी उसे ऐसा करने का कारण स्पष्ट करना होगा और जिसका फोन टैप किया जाना है, उसके राज्य के गृह सचिव से परमिशन लेनी होगी। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को भारतीय टेलीग्राफिक अधिनियम 1885 की धारा 5 (2) के तहत टेलीफोन को इंटरसेप्ट करने का भी अधिकार दिया गया है। फोन टैपिंग की इजाजत 60 दिनों के लिए दी जाती है जिसे विशेष परिस्थितियों में 180 दिन तक के लिए बढ़ाया जा सकता है।

निजता का अधिकार फोन टैपिंग रोक नहीं सकता?

भारतीय संविधान के तहत हमें कई मूल अधिकार मिले हैं। लेकिन निजता के अधिकार को लेकर लंबे समय तक अस्पष्टता रही। संविधान के अनुच्छेद 19, 20, 21 के अधिकारों में इसे अंतर्निहित माना गया है। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने अपने निर्णय में निजता को मौलिक अधिकार करार देते हुए कहा था कि इसे आर्टिकल 21 के तहत संरक्षण प्राप्त है। जीवन जीने के अधिकार में ही निजता की स्वतंत्रता भी आती है। इस स्वतंत्रता में बेवजह के हस्तक्षेप को गलत बताया गया है। इस वजह से कोई भी आपकी व्यक्तिगत बातचीत को सुन या टैप नहीं कर सकता। हालांकि सुरक्षा एजेंसियों को ‘विशेष परिस्थितियों’ में निजता के अधिकार को सीमित करने के अधिकार मिले हुए हैं।

जासूसी कांड के कुछ प्रमुख किस्से

भारतीय राजनीति में जासूसी की यह बात नई नहीं है। इतिहास देखें तो यह बात समझ में आती है कि जासूसी और भारतीय राजनीति का एक गठबंधन होने की बात हमेशा की जाती रही है। फर्क इतना है कि जासूसी की तकनीक बदल गई है। नई-नई तकनीक आने से जासूसी कराने के तरीके भी बदल गए हैं। लेकिन इज़राइली सॉफ्टवेयर पेगासस स्पाईवेयर के ज़रिए जासूसी का ये मामला सरकार के लिए आने वाले वक्त मुश्किल पैदा कर सकता है।

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