श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत में श्री हरि विष्णु की पूजा अराधना की जाती है।हिन्दू पंचांग के अनुसार,श्रावण मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है।पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है जो कि पौष मास में मनाई जाती है।मान्यता है कि श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के बराबर का फल मिलता है।जिन लोगों की संतान नहीं है उन लोगों के लिए यह व्रत शुभफलदायी है।भगवान हरि विष्णु की कृपा से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।यदि संतान किसी कष्ट से परेशान है तो यह व्रत रखने से सारे कष्ट दूर हो जाते है।संतान दीर्घायु होती है।

पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारम्भ- 18 अगस्त 2021 को 03:20 am

एकादशी तिथि समाप्त- 19 अगस्त 2021 को 01:05 am

पुत्रदा एकादशी व्रतपारण (व्रत तोड़ने का) समय- 19 अगस्त 2021 को 06:32 am से 08:29 am तक

 पुत्रदा एकादशी व्रत विधि

*दशमी को भोजन के बाद अच्छी तरह से दातून करें ताकि अन्न का अंश मुंह में न रहे। 

*एकादशी के दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प करें और शुद्ध जल से स्नान करें। 

*इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें और रात को दीपदान करें। 

*एकादशी की सारी रात भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें। 

*श्री हरि विष्णु से अनजाने में हुई भूल या पाप के लिए क्षमा मांगें।

*अगली सुबह पुनः भगवान विष्णु की पूजा कर ब्राह्मण को भोजन कराए।भोजन के बाद ब्राह्मण को क्षमता के अनुसार दान देकर विदा करें।

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पवित्रा एकादशी की कथा

प्राचीन काल की बात है एक नगर में राजा महिजीत राज करते थे।नि:संतान होने के कारण राजा अत्यंत दुखी रहते थे।मंत्रीयों से राजा का दुख देखा नहीं गया और वह लोमश ऋषि के पास गए।उन्होनें ऋषि से राजा के नि:संतान होने का कारण पूछा।तो लोमश ऋषि ने बताया कि पूर्व जन्म में राजा को एकादशी के दिन भूखा-प्यासा रहना पड़ा।पानी की तलाश में वह एक सरोवर के पास पहुंचे तो एक गाय वहां पानी पीने आई थी।राजा ने गाय को भगा दिया था और स्वयं पानी पीकर प्यास बुझाई थी।इससे उनसे अंजाने में एकादशी का व्रत हो गया और गाय को भगाने के कारण राजा को नि:संतान रहना पड़ रहा है।सुझाव बताते हुए ऋषि ने बताया कि यदि आप चाहते हैं कि राजा को पुत्र की प्राप्ति हो तो श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन अपना व्रत राजा को दान कर दें।मंत्रियों ने लोमश ऋषि की आज्ञा का पालन किया और इससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई।इस कारण पवित्रा एकादशी को पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है।

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