Darlings Movie Review: आलिया भट्ट की डार्लिंग्स 5 अगस्त को नेटफ्लिक्स (Netflix) पर रिलीज हो चुकी है और जैसा कि उम्मीद थी, फिल्म को अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। फिल्म का बजट लगभग 60 करोड़ है और वितरण अधिकार नेटफ्लिक्स को 75-80 करोड़ में बेचा गया है। आलिया भट्ट ने न सिर्फ इसमें मुख्य किरदार निभाया है बल्कि गौरी खान और गौरव वर्मा के साथ वो फिल्म की निर्माता भी हैं। उनके प्रोडक्शन की यह पहली फिल्म है, इसलिये भी लोगों में इसे लेकर एक अलग ही उत्सुकता थी कि अपने अभिनय से कमाल करने वाली आलिया के प्रोडक्शन से आखिर क्या नया निकला है।

फिल्म देखने के बाद कह सकते हैं कि हमेशा की तरह इस बार भी आलिया ने दर्शकों और अपने प्रशंसकों की उम्मीदें तोड़ी नहीं हैं। एक्टिंग में तो वो बेमिसाल हैं ही, एक प्रोड्यूसर के रूप में फिल्म की सब्जेक्ट लाइन का उनका चुनाव भी दमदार है।

विषय-वस्तु (Subject Line)

फिल्म की कहानी घरेलू हिंसा पर आधारित है लेकिन इसका ट्रीटमेंट मूवी के ट्रेलर से थोड़ा अलग है। ट्रेलर को डार्क-कॉमेडी कहकर प्रमोट किया गया था और ट्रेलर में आलिया का किरदार थोड़ा सस्पेंस वाला, थोड़ा डराने वाला लगता है। हालांकि फिल्म में बदरू (आलिया भट्ट) का किरदार उससे बिलकुल उलट है।

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स्टोरी-लाइन (Storyline)

फिल्म Badru, Hamza और Shamshu (आलिया की माँ) पर आधारित है। बदरू और हम्ज़ा ने लव-मैरिज की थी लेकिन शराब के नशे में हम्ज़ा अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता है। हम्ज़ा हर बार अपनी वाइफ के साथ मारपीट के बाद उससे माफी मांग लेता है और वह भावनाओं में आकर उसको माफ भी कर देती है। बदरू को उम्मीद है कि बच्चा होने के बाद उसका पति बदल जायेगा लेकिन बदरू की माँ यह समझती है कि ऐसा कभी नहीं होने वाला। वह अपनी बेटी को इससे बचाना चाहती है, जो पूरी तरह अपने पति के लिये डेडिकेटेड है।

एक वक्त पर कहानी ऐसा मोड़ लेती है जब बदरू का धैर्य जवाब दे जाता है और वह अपने सम्मान को वापस पाने के लिये पति से बदला लेना चाहती है, अपना सम्मान वापस पानाचाहती है। आगे बदरू की कहानी क्या मोड़ लेती है, ये देखना दिलचस्प है। फिल्म का अंत पहले predictable लगता है, लेकिन आखिरी सीन में आपको समझ आता है कि ये तो आप सोच ही नहीं सकते थे। 

कहानी का ट्रीटमेंट

कहानी अच्छी है और उसको प्रेजेंट करने का तरीका भी काबिले तारीफ है। घरेलू हिंसा एक बहुत तनावपूर्ण विषय है, इसे हल्का बनाने के लिए कॉमेडी का सहारा लिया गया है, लेकिन सब्जेक्ट से फिल्म भटकती नहीं है। फिल्म में एक मैसेज है कि ‘कोई अनजाने में गलती करे, तो और बात है, लेकिन अगर गलती करना किसी की आदत हो, मतलब कि अगर किसी का स्वभाव ही दबाने और सताने वाला हो, तो उसे मौका देने वाला अपनी हालत का जिम्मेदार खुद होता है’।

इस मैसेज को समझाने के लिए मेंढक और बिच्छू की कहानी का सहारा लिया गया है। प्रमोशन में आलिया का रेड-ड्रेस लुक देखकर कई लोगों को फिल्म का सोशल मैसेज पर बेस्ड एक सस्पेंस-थ्रिलर होने का भ्रम हुआ था,जिसे ऐसे दर्शक फिल्म शुरु होते ही ढूंढ़ने लगते हैं। वो सस्पेंस का इंतज़ार पूरी फिल्म में करते हैं लेकिन सस्पेंस आख़िर तक नहीं आता, बस आखिरी सीन में कुछ सेकंड्स के लिए फिल्म अनप्रिडिक्टेबल लगती है, फिर प्रिडिक्टेबल एंडिंग पर समाप्त होती है।

घरेलू हिंसा जैसे संवेदनशील विषय को कॉमिक रंग देकर मनोरंजन के साथ इससे एक सोशल मैसेज देने की कोशिश की गई है, जो सफल भी हुई है। ‘ये क्यों होता है’, ‘कैसे होता है’, ‘कैसे और किस-किस की लाइफ को प्रभावित करता है’, वगैरह-वगैरह पर बहुत डीटेल में न जाते हुए, सब्जेक्ट-लाइन को बहुत सिम्प्लिफाई करके दिखाया गया है। इसके लिए लव-स्टोरी का सहारा लिया गया है।

जैसा कि अमूमन घरों में होता है – ड्रिंक करके पत्नी को पीटना, शक करना जैसी बातें दिखाई गई हैं, लेकिन विषय बोझिल न हो और सोशल मैसेज भी बना रहे, इसमें बैलेंस बनाने की कोशिश की गई है। जैसे – फिल्म में जब आलिया भट्ट पहली बार अपने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर रही होती हैं तो दो डायलॉग्स का इस्तेमाल किये गये हैं – “मरद लोग दारू पीके जल्लाद क्यों बन जाता है” …. “क्योंकि औरत बनने देती है…!”

ये छोटे डायलॉग्स हैं, जिसको कॉमेडी के साथ ही खत्म कर दिया गया है, लेकिन अपना मैसेज ये दे जाता है कि घरेलू हिंसा को सहते हुए औरत खुद ही इसे बढ़ावा देती है और इसके परिणाणों की जिम्मेदार बनती है। इसी तरह घरेलू हिंसा सहती औरतों का “इमोशनल फूल” साइड दिखाते हुए एक डायलॉग है – “प्यार नहीं करता, तो मारता क्यों… और तुम प्यार नहीं करती, तो सहती क्यों”।

डायलॉग्स में स्टोरी-लाइन पर पकड़ बनाये रखने की पूरी कोशिश हुई है। कुछ पंच बहुत अच्छे हैं, यही फिल्म की जान हैं लेकिन कुछ सिचुएशन्स बोर भी करते हैं।

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फिल्मांकन (Picturization)

हालांकि ज्यादातर शूटिंग इनडोर है, लेकिन कुछ जगहों पर कैमरा-एंगल और साउंड-इफेक्ट का बेहतरीन इस्‍तेमाल किया गया है। जैसे – अबॉर्शन के बाद जब बदरू हॉस्पिटल से अपने पति से बदला लेने का प्लान करके आती है, तो उसका कैमरा एंगल अपने आप में कहानी को narrate करने के लिए काफी है।

एक सीन में, जब बदरू अकेली होती है और किचन में खाना बनाते हुए किडनैप्ड पति से मटर छिलवा रही होती है, उसका पति टूटे कांच से रस्सी तोड़कर खुद को आजाद कर लेता है… साधारण-सा सीन है लेकिन मटर के गिरने, ब्लेंडर की आवाज, आलिया का आना-जाना, बीच में बेफिक्री का छोटा-सा डायलॉग जिस तरह डाले गये हैं, वह आगे जो होने वाला है, उसका स्वाभाविक डर बनाता है।

कमजोर कड़ी

फिल्म को उबाऊ बनने से बचाने में डायलॉग की कॉमेडी काम आई है लेकिन बहुत जगहों पर फिल्म बोर करती है। शेफाली-आलिया के बीच आंखों के इशारों से बातचीत को दिखाते हुए हैं कॉमेडी की कोशिश की गई है, लेकिन कुछ जगहों पर वो बेवजह लगती है, बोर करती है।

औरत को हर तरह से इंडिपेंडेंट दिखाना और ट्रीटमेंट को बोझिल न बनाना समझ आता है, लेकिन हर जगह मर्दों को इस्तेमाल करने को एक ट्रिक की तरह दिखाया जाता है जो बहुत ज्यादा बोझिल और बेहद उबाऊ है।

क्यों देखें और क्यों न देखें!

पहले बात की जाये कि क्यों न देखें! डार्लिंग्स का टीजर-ट्रेलर, पोस्टर और ‘ला-इलाज गाना’ देखकर अगर आपने इससे ‘अंधाधुन (Andhadhun)’ जैसा सस्पेंस-थ्रिलर होने की उम्मीद बना रखी है, तो बिल्कुल न देखें। आप अंत तक इंतजार करते रहेंगे कि आलिया कुछ ऐसा करेंगी, कोई सस्पेंस क्रिएट होगा लेकिन वह नहीं होगा। फिल्म को रियलिस्टिक बनाने के लिए बदरू के किरदार में घरेलू हिंसा से जूझती औरतों का डर वाला साइड बार-बार दिखाया जाता है, वो हिम्मत कुछ बड़ा करने की करती है लेकिन अगले ही पल डर जाती है और उसकी माँ उसे सम्भालती है।

कुछ चरित्र भी अनावश्यक हैं, बोर कर सकते हैं। हालांकि, उन सबको एक खास मकसद से रखा गया है, लेकिन उन किरदारों के साथ जस्टिस नहीं हो पाया है, वो ठूँसे हुए से लगते हैं। 

हमेशा की तरह आलिया की एक्टिंग दमदार है लेकिन अभिनेता विजय वर्मा की एक्टिंग इस फिल्म की जान है, उनके हटते ही फिल्म थोड़ी बोझिल लगती है।

अब बाक कि फिल्म क्यों देखें! अगर आप आलिया के फैन हैं, फिर तो कोई और वजह ही नहीं बनती फिल्म न देखने की। इसके अलावा अगर सोशल मैसेज के साथ एक अच्छी एंटरटेनिंग मूवी देखना चाहते हैं, तो भी फिल्म आपको निराश नहीं करेगी, फिल्म के कॉमिक डायलॉग शानदार हैं।

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रेटिंग (Rating)

फिल्म की पटकथा अच्छी है और मेकिंग में इसका प्रभाव भी दिखता है लेकिन इसे थोड़ा और बेहतर बनाया जा सकता था। डायलॉग्स के लिए फुल मार्क्स मिलेंगे, लेकिन unnecessary सिचुएशन्स और characters के कारण फिल्म कही-कहीं बोझिल बनी है, इससे इनकार नहीं कर सकते। इसके अलावा किडनैपिंग का सीन बहुत लंबा और उबाऊ हो गया है जिसके कारण इसके मार्क्स कटते हैं।

कुल मिलाकर एक संवेदनशील विषय को औसत से बेहतर दिखाने में ‘डार्लिंग्स और टीम’ कामयाब हुई है। फिल्म one time watch जरूर है।

स्टार: 3.5

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