खुदकुशी यानी खुद जिंदगी को खत्म कर देना और मौत से दोस्ती कर लेना। आदमी खुद से हारकर मौत को गले लगाता है। लेकिन एक रिसर्च ने सबके होश उड़ा दिए हैं। सर्वे में पता चला है कि खुदकुशी की नई वजह बढ़ती नमी यानी बढ़ती ह्यूमिडिटी है। बढ़ती वैश्विक गर्मी और हीटवेव्स की वजह से दुनियाभर में नमी की मात्रा भी बढ़ रही है। वैज्ञानिकों ने स्टडी में पता लगाया है कि नमी की वजह से आत्महत्या करने और उसका प्रयास करने की दर में बढ़ोतरी हुई है। इस स्टडी में यह खुलासा किया गया है कि नमी की वजह से महिलाएं और युवा खुदकुशी का ज्यादा प्रयास कर रहे हैं या फिर खुद को खत्म कर ले रहे हैं। ये स्टडी 1979 से लेकर 2016 के बीच जमा किए डेटा के आधार पर की गई है। ये डेटा 60 देशों से जमा किया गया है। इस स्टडी को संयुक्त राष्ट्र, ससेक्स और जेनेवा की यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने किया है। जिसमें यह बताया गया है कि तीव्र नमी की वजह से लोग ज्यादा खुदकुशी कर रहे हैं। जबकि, इससे पहले कई ऐसी स्टडीज आई थीं, जिनमें कहा गया था कि गर्मी की वजह से भी लोग खुदकुशी करते हैं।

बढ़ती ह्यूमिडिटी कैसे बन रही मौत ?

रिसर्च को करने वाली टीम की सदस्य डॉ. सोंजा अयेब-कार्लसन ने कहा कि नमी की वजह से शरीर के तापमान में काफी तेजी से बदलाव होता है। जिसकी वजह से आपको काफी ज्यादा असहज महसूस होने लगता है। ऐसी स्थिति में शरीर में इतनी ज्यादा प्रतिक्रियाएं होती हैं, जो मानसिक रूप से आपको परेशान कर सकती हैं। कई बार इतना ज्यादा प्रभावी असर होता है कि इंसान खुद को खत्म करने का प्रयास कर लेता है या फिर मार डालता है। डॉ. सोंजा कार्लसन ने कहा कि अगर आप मानसिक स्वास्थ्य की बात करते हैं तो आपको कई चीजों का ध्यान रखना होता है। ऐसे मौसम में अत्यधिक बेचैनी होती है। नींद नहीं आती। अगर ऐसे में किसी तरह का तनाव आपके पास पहले से है तो आप इन सारे फैक्टर्स को बर्दाश्त नहीं कर सकते। अंत में आप वो कदम उठाते हैं जो जिंदगी को खत्म कर देता है। यह बात सबको पता है कि ज्यादा गर्मी में आसानी से नींद नहीं आती। अगर इसमें नमी भी बढ़ जाए तो खुदकुशी का खतरा और बढ़ जाता है।

हाईटेक शहर में मौत से दोस्ती का जुनून ?

कुछ हद तक लॉकडाउन को भी खुदकुशी का जिम्मेदार माना जा सकता है। लॉकडाउन के बाद जिस तरीके से बेरोजगारी बढ़ी लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पिछले दो सालों में खुदकुशी के मामले बढ़े हैं। कुछ सामाजिक और कुछ पर्सनल कारणों के चलते सुसाइड के मामले सामने आए हैं। नोएडा सेंट्रल ज़ोन की ही बात करें तो जनवरी से लेकर अक्टूबर तक 231 सुसाइड के मामले सामने आए है। जिसमे सबसे अधिक 106 सुसाइड के मामले केवल बिसरख थाना इलाके से सामने आए है। वही अगर बात करे आत्महत्या करने वालो की तो पुरुषों की संख्या 165 बताई गई। वही सुसाइड के मामलों में महिलाओ की संख्या 65 बताई गई। कहीं गृहक्लेश तो कहीं रोजगार और कहीं मानसिक तनाव जैसी वजह से लोगों ने सुसाइड किया। नोएडा सेंट्रल में ही 231 सुसाइड के केस सामने आए हैं। एक दूसरा सच ये भी है कि नोएडा जैसे हाईटेक शहर में जिंदगी जितनी आसान है लगती है उतनी है नहीं। रफ्तार के इस शहर में अगर पैसे कमाने की रफ्तार कम हुई तो जिंदगी बोझ लगने लगती है और फिर वो हालात पैदा होते हैं जिनके आगे सिर्फ और सिर्फ मौत ही नजर आती है। लेकिन किसी हाइटेक शहर में सुसाइड के केस बढ़े तो चिंता लाजिमी है।

WHO की खुदकुशी पर रोक लगाने की कोशिश

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की योजना है कि साल 2030 तक दुनियाभर में आत्महत्या में एक तिहाई कमी लाई जाए। इस समय दुनिया भर में हर साल 7 लाख लोग खुदकुशी करते हैं। इस स्टडी में नमी और खुदकुशी की दर के बीच जो ट्रेंड स्थापित होता दिख रहा है, वो डरावना है। इसका सबसे ज्यादा असर महिलाओं, बच्चों और युवाओं पर पड़ रहा है। नमी से मानसिक सेहत बिगड़ती है, उससे परिवार पर असर पड़ता है। फिर समाज पर तनाव, बेचैनी, नींद नहीं आने जैसी समस्याओं में इजाफा होता है। इन सबसे परेशान होकर इंसान खुद को खत्म कर लेता है।

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