हिंद महासागर में दबदबा बढ़ाने की जुगत में लगे चीन को भारत ने तगड़ा झटका दिया है। श्रीलंका को कर्ज के जाल में फंसाने की चाल बेनकाब होने के बाद भारत ने चीन पर सामरिक बढ़त हासिल की है।

जी हां, भारत ने उत्तरी श्रीलंकाई द्वीप समूह में बिजली संयंत्र परियजोनाएं स्थापित करने का समझौता किया है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए गए। बड़ी बात यह है कि श्रीलंका के मंत्रिमंडल ने पिछले साल इसके लिए चीन की कंपनी के साथ करार पर मुहर लगा दी थी। अब उसे चीन से छीनकर भारत को सौंप दिया। जयशंकर ऐसे समय में श्रीलंका गए हैं जब देश की अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में है। कर्ज का बोझ बढ़ गया है, विदेशी मुद्रा भंडार खाली है और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन तेज हो गए हैं। श्रीलंका के बुरे दिन के लिए चीन को जिम्मेदार माना जा रहा है। भारत उसकी मदद के लिए आगे आया है।

उधर, भारत म्यांमार को अलग-थलग करने की अमेरिकी कोशिशों में शामिल नहीं हो रहा है। बिम्स्टेक समिट में म्यांमार ने भी शिरकत थी जबकि अमेरिका ऐसा नहीं चाहता था। प्रधानमंत्री मोदी ने एक लाइन में पड़ोसी देशों को बड़ा संदेश दे दिया। यूरोप का जिक्र कर पीएम ने कहा कि वहां के हालात ने अंतर्राष्ट्रीय अस्थिरता को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। शायद, पीएम का इशारा चीन की हरकतों के खिलाफ एकजुट रहने का था।

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श्रीलंका में चीन का खेल खत्म!
चीन की कंपनी सिनोसार-टेकविन के साथ जनवरी 2021 में जाफना तट पर नैनातीवु, डेल्फ या नेदुनतीवु और अनालाईतिवु में हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने का अनुबंध किया गया था। भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई तो श्रीलंका में फिर से मंथन शुरू हो गया। दरअसल, ये तीनों स्थान तमिलनाडु के करीब हैं और भारत नहीं चाहता कि चीन अपनी मौजूदगी बढ़ाए। अब भारत और श्रीलंका के बीच जाफना में तीन बिजली संयंत्र परियोजनाएं शुरू करने के समझौते पर हस्ताक्षर होना दिखाता है कि चीन के पांव उखड़ने वाले हैं। परियोजनाओं के स्थान को लेकर भारत के चिंता जताए जाने के बाद चीन ने पिछले साल हाइब्रिड ऊर्जा संयंत्रों को लगाने की परियोजना को ‘तीसरे पक्ष’ की सुरक्षा चिंताओं के चलते रद्द कर दिया था।

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