वर्तमान समय में केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सरोगेसी (surrogacy) एक ऐसी विधि बन गई है जिसके जरिए काफी लोग मां-बाप बन रहे हैं। हाल ही में बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा भी सरोगेसी से मां बनी है। हालांकि ये कोई पहला मामला नहीं जिसमें कोई एक्ट्रेस सरोगेसी से मां बनी हो। इससे पहले भी कई सेलिब्रिटीज सरोगेसी से माता-पिता बन चुके हैं। सरोगेसी को लेकर लोगों के मन में अलग-अलग तरह के सवाल खड़े होते हैं इसलिए आज हम आपके इन सभी सवालों का जवाब देने आए हैं। आज हम आपको सरोगेसी से संबंधित ही कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां देंगे।

आखिर क्या है सरोगेसी?

सरोगेसी के संदर्भ में लोगों के मन में अलग-अलग तरह के सवाल खड़े होते हैं। कुछ लोगों का तो सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि आखिर यह सेरोगेसी है क्या? इसके जवाब में हम आपको बता दें कि सरोगेसी एक ऐसा ऑप्शन है जिसको ऐसे कपल्स अपनाते हैं जो कि प्रजन्न संबंधी मुद्दों, गर्भपात या जोखिम भरे गर्भावस्था के कारण गर्भधारण जैसी समस्याओं से जूझ रहे होते हैं। यदि आम बोलचाल की भाषा में समझा जाए तो सरोगेट को किराए की कोख भी कहा जाता है।

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इसके अंतर्गत एक कपल अपना बच्चा पैदा करने के लिए किसी दूसरी महिला की कोख किराए पर लेता है। इस पूरी प्रक्रिया को ही सरोगेसी के नाम से जाना जाता है। इस विधि में सरोगेट कोई महिला अपने या फिर डोनर के अंडाणु के जरिए किसी दूसरे कपल के लिए गर्भवती होती है और 9 महीने किसी दूसरे का बच्चा अपनी कोख में रखती हैं, जो महिला ऐसा करती हैं उसे सरोगेट मदर कहा जाता है।

सरोगेसी के प्रकार-

समान्यत: सरोगेसी दो प्रकार की होती हैं। एक तो ट्रेडिशनल सेरोगेसी और दूसरी जेस्टेशनल सेरोगेसी, तो आइए जानते हैं कि आखिर इनमें क्या फर्क है?

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ट्रेडिशनल सरोगेसी- ट्रेडिशनल सेरोगेसी इस प्रक्रिया में पिता के शुक्राणुओं को सरोगेट मदर के अंडाणु से मैच करावाया जाता है। बाद में डॉक्टर कृत्रिम तरीके से सरोगेट महिला के कार्विक्स, फेलोपियन ट्यूब में इस शुक्राणु को हस्तांतरित करती है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत स्पर्म बिना किसी रूकावट के महिला के यूटेरस में स्थापित हो जाते हैं। इसके बाद सरोगेट मदर बच्चे को 9 महीने अपनी कोख में रखती है और पालती है। बता दें कि इस पूरी प्रक्रिया में सरोगेट मदर ही बच्चे की बायोलॉजिकल मदर होती है। इस प्रक्रिया में जब पिता के शुक्राणु का इस्तेमाल नहीं किया जाता, तो फिर किसी और डोनर का स्पर्म इस्तेमाल में लाया जाता है। ऐसे में पिता का भी बच्चे से जेनेटिक रिलेशन नहीं माना जाता। इसी प्रक्रिया को ट्रेडिशनल या पारंपरिक सरोगेसी के नाम से जाना जाता है। 

जेस्टेशनल सरोगेसी- इसके अंतर्गत जिस सेरोगेट मदर की मदद ली जाती है। उसका बच्चे से किसी तरह का जेनेटिकली रिश्ता नहीं होता। इसका मतलब यह है कि गर्भवती अवस्था में सरोगेट मदर के अंडाणु का इस्तेमाल नहीं होता और ना ही वह बच्चे की बायोलॉजिकल मां होती है। इसके अंतर्गत जो सरोगेट मदर होती है वह सिर्फ बच्चे को 9 महीने पालने का और जन्म देने का काम ही करती है। इस विधि में पिता के शुक्राणु और माता के अंडाणु का मेल या डोनर के शुक्राणु और अंडाणु का मेल टेस्ट कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के युटेरस में स्थानांतरित किया जाता है।

भारत में सरोगेसी के लिए क्या है प्रावधान?

जानकारी के लिए आपको बता दे कि एक सरोगेट महिला की उम्र तकरीबन 25 से 35 के बीच में होनी चाहिए। सिर्फ यही नहीं इसके अलावा यह भी जरूरी है कि जो महिला सरोगेट मदर की भूमिका निभाने वाली है। वह दंपत्ति के परिवार से हो। हाल ही में जो सरोगेसी रेगुलेशन बिल प्रचलन में है। उसके मुताबिक कमर्शियल सरोगेसी पर बैन लगा दिया गया है। 

आज तक में प्रकाशित खबर में मुंबई बायकुला के मसिना अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रजनन चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. राणा चौधरी ने बताया है कि “नए नियम के मुताबिक सरोगेट की उम्र 25 से 30 साल के बीच रखी गई है और वह अपने जीवन काल में केवल एक बार ही सरोगेट के रूप में काम कर सकती हैं। पहले यह तीन बार था। पहले भारत में कमर्शियल सरोगेसी ही काफी तेजी से प्रचलित थी और इसमें 15 से 30‌ लाख रुपए या उससे ज्यादा का खर्च आता था, लेकिन अब पूरा उद्देश्य सरोगेट के हितों की रक्षा करना है। ताकि सरोगेसी की प्रक्रिया के दौरान उसकी अच्छी तरह से देखभाल की जा सके और उसका शोषण ना हो।

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