पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में पंजाब में 20 फरवरी को 117 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया खत्म हुई। चुनावों के बाद अब परिणाम आने का इंतजार है। ‌ मतदान के बाद अब सियासी दल अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। 10 मार्च को चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता लगेगा कि किस पार्टी का वर्चस्व स्थापित होने वाला है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि सियासी दलों के दावे खोखले नजर आ रहे हैं।

नतीजों का अनुमान लगाने का सिलसिला

राजनीति के जानकार कहते हैं कि मतदान के रुझान और चुनावी विश्लेषण की टिप्पणी पर ध्यान करें तो पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा के आसार हैं। इसके अलावा पहले वोटिंग ट्रेंड को लेकर नतीजों का अनुमान लगाने का सिलसिला जारी है। पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा और मतदान कम होने के लिए कौन से कारण जिम्मेदार हैं यह जानने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के निर्देशक प्रोफेसर प्रमोद कुमार ने बताया की 2017 की तुलना में इस बार मतदान कम हुआ है।

117 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव

प्रमोद कुमार का कहना है कि पंजाब विधानसभा चुनाव का परिणाम अनुमान लगाना एक राजनीतिक विचार है। लेकिन पंजाब में किसी एक की जगह नहीं बल्कि 117 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुए हैं। पंजाब विधानसभा चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले होंगे वोटिंग ट्रेन से साफ नजर आता है कि अगर चुनाव मुद्दाविहीन हो, कोई प्रभावशाली राजनीतिक विचारधारा न हो तो मतदाताओं में बिखराव की समस्या हो जाती है। डी आई डी सी के निदेशक के मुताबिक मालवा क्षेत्र में कांग्रेस ने पिछली बार 40 सीटें जीती थी लेकिन इस बार उन्हें 5 फ़ीसदी से अधिक वोट का नुकसान हुआ।

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20 में से 18 सीटें मालवा क्षेत्र में जीती

आम आदमी पार्टी ने 20 में से 18 सीटें मालवा क्षेत्र में जीती थी। लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने सीटों में कम से कम 14 सीटों पर पांच फीसदी से अधिक नुकसान हुआ। शिरोमणि अकाली दल ने पिछले चुनावों में इस क्षेत्र में 8 सीटें जीती थी। वही प्रोफेसर प्रमोद कुमार का कहना है कि चुनाव के नजदीकी विपक्षी पार्टियों ने खालिस्तान के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी को घेरने की कोशिश की। और इसमें इस मुद्दे को उठाया जिसका कोई व्यापक असर देखने को नहीं मिला। ‌

सुरक्षा को लेकर उठाए गए मुद्दे की वजह से हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिश हुई लेकिन बीजेपी को इसकी वजह से राजनीतिक फायदा पहुंचा। आम आदमी पार्टी को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी किए लेकिन मतदाताओं को आकर्षित करने में नाकामयाब रहे।

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