एक तरफ कोरोना दूसरी तरफ सीमाओं पर तनाव। चीन के साथ-साथ नेपाल भी भारत को लगातार आंख दिखा रहा है। पूरा विवाद 8 मई से शुरू हुआ जब भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 80 किलोमीटर की नई सड़क का उद्घाटन किया । जो लिपुलेख पास को उत्तराखंड के धारचुला से जोड़ती है। इसके बाद से ही नेपाल और भारत के रिश्तों में दराद पड़ गई। नेपाल ने लिपुलेख को अपना हिस्सा बताते हुए विरोध करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं 18 मई को नेपाल ने नया नक्शा भी जारी कर दिया। जिसमे भारत के तीन इलाके लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को अपना हिस्सा बताया। इसके बाद इस नक्शे को नेपाल की संसद में पास कराया गया। इस दौरान समाजवादी पार्टी की सांसद सरिता गिरी ने इसका विरोध किया। सरिता गिरी नेपाल की समाजवादी पार्टी की नेता हैं। जब उनकी अपनी पार्टी नेपाल के नक्शे में बदलाव का समर्थन कर रही थी। तो उन्होंने अकेले ही नए नक्शे का विरोध करते हुए इसके लिये होने वाले संविधान संशोधन विधेयक का विरोध किया था। अब उनकी समाजवादी पार्टी ही उनका विरोध कर रही है और सरिता गिरी के इस गुनाह के लिये सजा देने की सिफारिश कर रही है। नेपाल की समाजवादी पार्टी के महासचिव राम सहाय प्रसाद यादव के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है जिसने मांग की है कि सांसद सरिता गिरि को संसदीय सीट और पार्टी की सामान्य सदस्यता से बाहर कर दिया जाना चाहिए।

18 जून को नेपाल की संसद में नया नक्शा पास हुआ (फाइल फोटो)

18 मई को नक्शा जारी किया गया और 18 जून को नेपाल की संसद में एक संविधान संशोधन के ज़रिए पास किया गया। इस संशोधन बिल का विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भी सरकार का समर्थन किया था। लेकिन सरीता गिरी ने पार्टी लाइन से अलग जाते हुए इस संशोधन क़ानून पर एक संशोधन प्रस्तावित किया था। सरीता गिरी ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि नेपाल के पुराने मैप को ही रखा जाना चाहिए। सरिता गिरी ने कहा कि नेपाल भारत के जिन तीन हिस्सों को नए नक्शे में दिखा रहा है। उसके समर्थन में पर्याप्त सबूत नहीं हैं। वहीं भारत का भी कहना है कि सड़क हमारे क्षेत्र में ही है। नेपाली समाजवादी पार्टी की कार्रवाई के बाद सरिता गिरी का भी बयान सामने आया। सरिता गिरी ने कहा कि- आधिकारिक निर्णय का पत्र मुझे नहीं मिला है। लेकिन इस फैसले के बारे में मीडिया से जानकारी मिली है। ये मेरे खिलाफ साजिश है। मुझे असंवैधानिक तरीके से निकाला गया है। मैं एक सांसद हूं और सांसद के बारे में कोई भी निर्णय लेने का अधिकार अकेले उपेंद्र यादव को नहीं है। पार्टी संसदीय दल को निर्णय करना होता है। ये किसके दबाव में निर्णय लिया गया, मैं पार्टी के निर्णय को अदालत में चुनौती दूंगी। दूसरी तरफ भारत और नेपाल में सीमा विवाद के कारण रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं । और नेपाल अभी भी अपनी झूठी जिद पर अड़ा हुआ है।

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