जब से कोरोना महामारी ने दुनिया में कोहराम मचाया है तभी से इस वायरस की वैक्सीन पर काम चल रहा है और हर देश अपनी तरफ से जी जान से इस वायरस की वैक्सीन खोजने में लगा है। कुछ देशों ने तो वैक्सीन बनाकर उनपर काम करना भी शुरू कर दिया है। लेकिन अभी तक किसी भी देश को पूरी तरह से कामयाबी नहीं मिल पाई है। वैज्ञानिकों का पहला काम है लोगों को कोरोना से मरने से रोकना और इसी पर वैज्ञानिक दिन रात  मेहनत कर रहे हैं।

हांलाकि जिन वैक्सीन पर काम किया जा रहा है उनको लेकर ये यकीन नहीं है कि ये वैक्सीन कोरोना को रोक पाएगी या नहीं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर वैक्सीन की डोज नाक के जरिए दी जाए तो शायद कोरोना को रोका जा सकता है। बर्मिंघम की अल्बामा यूनिवर्सिटी की इम्यूनोलॉजिस्ट और वैक्सीन डेवलपर फ्रांसिस का कहना है कि अगर फिलहाल क्लीनिकल ट्रायल से गुजर रही ज्यादातर वैक्सीन का डोज मसल इंजेक्शन के जरिए शरीर में पहुंचाया जा रहा है। आम तौर पर बाह के ऊपर वाली मसल यानि की मांसपोशियों में इंजेक्शन लगाया जाता है।

मसल्स से इंजेक्शन लगाने से अच्छा इम्यून रिसपॉन्स देखने को मिलता है। इसलिए ज्यादातर वैक्सीन डेवलपर यहीं से शुरूआत करते हैं। मसल से सिस्टमैटिक रिसपॉन्स तो मिलता है। लेकिन लोकल रिस्पॉन्स नहीं मिलता। दरअसल सिस्टमैटिक रिस्पॉन्स का मतलब है। उन एंटीबॉडीज का पैदा करना जो खून के जरिए सिस्टमैटिकली शरीर के दूसरे हिस्सों तक पहुंचती है। लेकिन कोरोना वायरस के मामले में संक्रमण की शुरूआत नाक और गले से होती है।

ऐसे में जो वैक्सीन इंजेक्शन के जरिए मसल्स से दी जा रही हैं उनसे वायरस रोका जा सकता है लेकिन वो गले और नाक में फिर भी रह जाता है जो दूसरों को संक्रमित करने के लिए काफी है। अगर वैक्सीन को नाक के जरिए दी जाए तो इससे ज्यादा इम्यूनिटी मिलती है और कोरोना से बचा जा सकता है। अगर वैक्सीन को नाक से दिया जाएगा तो जो वायरस गले में रुका होगा वो वहीं नष्ट हो जाएगा।

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आरोही डीएनपी इंडिया में मनी, देश, राजनीति , सहित कई कैटेगिरी पर लिखती हैं। लेकिन कुछ समय से आरोही अपनी विशेष रूचि के चलते ओटो और टेक जैसे महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी लोगों तक पहुंचा रही हैं, इन्होंने अपनी पत्रकारिका की पढ़ाई पीटीयू यूनिवर्सिटी से पूर्ण की है और लंबे समय से अलग-अलग विषयों की महत्वपूर्ण खबरें लोगों तक पहुंचा रही हैं।

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