आज हर​तालिका तीज का पावन त्यौहार है । इस दिन सुहागिने अपने पति की लंबी आयु की प्रार्थना करते हुए व्रत रखती हैं। पुरे दिन न ही कुछ खाती हैं और न ही पूरे दिन पानी पीती हैं। पुरे दिन व्रत रखने के बाद अगले दिन महिलाएं पूजा करती हैं जिसके बाद वह अपना व्रत खोलती हैं। हरतालिका तीज का त्यौहार भारतवर्ष की महिलाओं के लिए बहुत महत्व रखता है। जहाँ, सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए ये व्रत रखती हैं, वहीं कुंवारी कन्याएं इस व्रत को इसलिए रखती हैं ताकि उन्हें अच्छे वर की प्राप्ति हो। हरतालिका तीज के शुभ अवसर पर तो उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में इस दिन प्रथा के तौर पर सभी महिलाएं मेहंदी लगाती हैं, सोलह श्रृंगार करती हैं, हरी चुनरी, हरे वस्त्र पहनती हैं और झूला झूलती हैं।हरियाली तीज के अवसर पर इस दिन सुहागिन महिलाओं के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां उनके ससुराल भेजी जाती है। हरियाली तीज के दिन महिलाएं सुबह घर के काम और स्नान करने के बाद सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं। निर्जला व्रत की शुरुआत होते ही महिलाएं मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा आरंभ करती हैं। पूजा के अंत में हरतालिका तीज की कथा कही और सुनी जाती है। इस कथा के दौरान सुहागिन महिलाएं अपने पति और कुंवारी कन्याएं अपने होने वाले पति के लिए प्रार्थना करती हैं।

हरतालिका तीज व्रत में वैसे तो काफी कथाएं कहीं जाती हैं, जिनमें से एक कथा ये भी है। जब भगवान शिव ने देवी पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म के बारे में याद दिलाने के लिए उन्हें यह कहानी सुनाई थी।

शिवजी कहते हैं- हे पार्वती! बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किए थे। किसी भी मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुखी थे। ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे।जब तुम्हारे पिता ने नारदजी से उनके आगमन का कारण पूछा, तो नारदजी बोले- ‘हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं। नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी। यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं, तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं।

फिर शिवजी पार्वतीजी से कहते हैं- ‘तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया। लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ। तुम मुझे यानि कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी।तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई। तुम्हारी सहेली से सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना। इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुखी हुए। वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा। उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली। तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी।

भाद्रपद तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना की जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की। इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा कि ‘पिताजी, मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे।’ पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गए। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान से हमारा विवाह किया।

भगवान शिव ने इसके बाद कहा कि- ‘हे पार्वती! तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मनवांछित फल देता हूं। भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।

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