नई दिल्ली/ जब भी हम शिव मंदिर जाते है, तो सबसे पहले दर्शन यदि किसी के होते हैं तो वो हैं शिव के प्रिय नंदी जी के। आप सब ने भी देखा होगा कि शिव मंदिर में अक्सर कुछ लोग शिवलिंग के सामने बैठे नंदी जी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। ये एक परंपरा बन गई है। इस परंपरा के पीछे की वजह भी एक मान्यता है। आज हम आपको उसी के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है..

जानिए क्यों कहते है नंदी जी के कान में मनोकामना

मान्यता है जहां भी शिव मंदिर होता है, वहां नंदी जी की स्थापना जरूर की जाती है। क्योंकि नंदी जी भगवान शिव जी के परम भक्त हैं। जब भी कोई व्यक्ति शिव मंदिर में आता है तो वह नंदी जी के कान में अपनी मनोकामना कहता है। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान शिव जी तपस्वी हैं और वे हमेशा समाधि में रहते हैं। ऐसे में उनकी समाधि और तपस्या में कोई विघ्न ना आए। इसलिए नंदी जी ही हमारी मनोकामना शिवजी तक पहुंचाते हैं। इसी मान्यता के चलते लोग नंदी जी को अपनी मनोकामना कहते हैं।

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शिव जी के ही अवतार हैं नंदी जी

शिलाद नाम के एक मुनि थे, जो ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद मुनि ने संतान भगवान शिव जी को प्रसन्न कर अयोनिज और मृत्युहीन पुत्र मांगा। भगवान शिव ने शिलाद मुनि को ये वरदान दे दिया। एक दिन जब शिलाद मुनि भूमि जोत रहे थे, उन्हें एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। एक दिन मित्रा और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम आए। उन्होंने बताया कि नंदी जी अल्पायु हैं। यह सुनकर नंदी जी महादेव जी की आराधना करने लगे। प्रसन्न होकर भगवान शिव जी प्रकट हुए और कहा कि तुम मेरे ही अंश हो, इसलिए तुम्हें मृत्यु से भय कैसे हो सकता है? ऐसा कहकर भगवान शिव जी ने नंदी जी को अपना गणाध्यक्ष भी बना लिया।

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