Parle-G Biscuit: पारले-जी बिस्कुट, जिसे देश का बिस्कुट कहे तो गलत नहीं होगा। आपने भी कभी न कभी तो पारले-जी का बिस्कुट खाया ही होगा तो आप इसके स्वाद को भी अच्छे से जानते होंगे। पांच रुपये में मिलने वाला ये बिस्कुट आज इतना बड़ा नाम है कि इसे किसी पहचान की जरूरत नहीं है।

आपको बता दें कि हाल ही में देश की जाने-मानी एयरलाइन कंपनी इंडिगो के एमडी और अरबपति कारबारी राहुल भाटिया भी विमान में बैठकर पांच रुपये के पारले-जी बिस्कुट का स्वादा चाय की चुस्कियों के साथ ले रहे थे। ऐसे में इस बिस्कुट ने जो नाम और रूतबा बनाया है, वो किसी और बिस्कुट कंपनी ने नहीं बनाया है। पारले-जी बिस्कुट के साथ लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई है। ये एक आम सा बिस्कुट होने के बाद भी एक खास जादू वाला बिस्कुट है, जिसका नाम सुनते ही लोग इसके दीवाने हो जाते हैं।

इतने सालों तक कैसे कमाया मुनाफा

देश में कोरोना महामारी आने के बाद पारले-जी कंपनी ने अपने बिस्कुट के पैकेट की कीमत में 1 रुपये की बढ़ोतरी की। इसके बाद 4 रुपये में मिलने वाला बिस्कुट 5 रुपया का हो गया। लेकिन यहं पर सवाल ये है कि आखिर लगातार बढ़ती महंगाई के बाद भी पारले-जी कंपनी ने अपने बिस्कुट की कीमत इजाफा नहीं किया और फिर भी लगातार मुनाफा कैसे कमाया।

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कंपनी ने अपनाई खास रणनीति

आपको बता दें कि कोई भी कंपनी जब अपने उत्पाद का दाम बढ़ा देती है तो ग्राहक उस उत्पाद की जगह किसी अन्य उत्पाद को विकल्प के तौर पर खोजने लगते हैं, मतलब किसी और प्रोडक्ट की ओर चले जाते हैं। ऐसे में कंपनी ने एक खास रणनीति अपनाई और साल 1994 के बाद से साल 2021 तक बिस्कुट के दाम नहीं बढ़ाए।

कंपनी इस तरह से कमाती है लाभ

गौरतलब है कि कंपनी अपने लाभ को बरकरार रखने के लिए उसके वजन को कम कर देती है। पहले पैकेट 100 ग्राम का आता था। फिर कंपनी ने इसे घटाकर 92.5 ग्राम कर दिया। इसके बाद जब महंगाई का सिलिसिला चलता रहा तो कंपनी ने इसके वजन को आधा कर दिया। वहीं, वर्तमान में पांच रुपये का बिस्कुट का पैकेट 55 ग्राम में आ रहा है।

कंपनियां अपनाती हैं इस तकनीक को

मालूम हो कि इस तकनीक को ग्रेसफुल डिग्रेडेशन तकनीक कहते है। कई एफएमसीजी कंपनियां इसी तकनीक को अपनाती हैं और अपना बिजनेस चलाती है। इस तकनीक में कीमत नहीं बढ़ाई जाती, बल्कि उत्पाद के वजन को कम कर दिया जाता है। ऐसे में ग्राहकों को धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ जाती है। इसके पीछे एक बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है, जो इंसानी दिमाग को नियंत्रित कर लेता है।

कब हुई पारले की शुरुआत

आपको बता दें कि पारले की शुरुआत साल 1929 में हुई थी। पारले ने पहली बार साल 1938 में पारले ग्लूकोज नाम से बिस्कुट का उत्पादन शुरु किया था। वहीं, 1940 से 1950 के दशक में पारले ने भारत के पहले नमकीन बिस्कुट “मोनाको” को पेश किया था।

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अमित महाजन DNP India Hindi में कंटेंट राइटर की पोस्ट पर काम कर रहे हैं.अमित ने सिंघानिया विश्वविद्यालय से जर्नलिज्म में डिप्लोमा किया है. DNP India Hindi में वह राजनीति, बिजनेस, ऑटो और टेक बीट पर काफी समय से लिख रहे हैं. वह 3 सालों से कंटेंट की फील्ड में काम कर रहे हैं.

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