कपड़े हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। 20वीं शताब्दी में कपड़ों पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता है। हमारे दादा-दादी नाना-नानी सीमित कपड़ों में जीवन गुजार देते थे लेकिन आज के दौर में ये बहुत मुश्किल है। समय के साथ फैशनेबल कपड़ों ने लोगों की रुचि और डिमांड पूरी तरह बढ़ा दी है लेकिन बहुत कम लोग ही ये बात जानते हैं कि कपड़ों से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचाते है। कपड़ों से निकलने वाला पॉलीफाइबर पर्यावरण में बहुत बुरे तरीके से फैल चुका है। दुनिया में फाइबरों के उत्पादन में लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा पॉलीफाइबर का है।

पॉलीफाइबर बहुत ही सूक्ष्म होता है। एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि ये मिट्टी, पानी, और आपके भोजन में है। समुद्र के जीवों पर पॉलीफाइबर का सबसे बुरा असर पड़ता है। कई बार खबरें सामने भी आई हैं कि व्हेल मछलियों का पेट प्लास्टिक से भरा हुआ है, कछुए प्लास्टिक बैग में फंसे हुए हैं।  लेकिन हम सब ऐसे कछुए हैं जो पॉलीफाइबर में फंसे हुए हैं। पॉलीफाइबर और सिंथेटिक कपड़ों से जुड़े अध्ययन विभिन्न स्वास्थ्य खतरों के बारे में बताते हैं जिसमें कैंसर भी शामिल है। रिसर्च में सामने आया है पॉलीफाइबर  बच्चों में स्वलीनता (ऑटिज़्म) सिंथेटिक कपड़ों से जुड़ी हुई है। यह आपको अपंग बनाती है, मानव बुद्धिमत्ता कम होती जाती है। इन सारी चीजों से निपटने के लिए हमें पर्यावरण की तरफ जाना होगा। सदगुरू का मानना है कि प्रकृति से बने कपड़ों की तरह रुख करना चाहिए।

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हाथ से बुने कपड़े का इस्तेमाल करने पर जोर

सदगुरू का कहना है कि निजी तौर पर, मैं इस तरह कपड़े पहनता हूं कि मैं इन सब बेहतरीन बुनकरों का प्रतिनिधि होता हूं। मैं हर किसी से विनती करता हूं, कम से कम वे लोग जो भारत में समृद्ध हैं वो हाथ से बुने कपड़े पहनने। हाथ से बुने कपड़े  आपके स्वास्थ्य के लिए है, निजी भलाई और पर्यावरण की भलाई के लिए है। इनसे आपको मानसिक शांति और शारीरिक शांति भी मिलेगी।

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