बिहार में जाति आधारित जनगणना की मांग तूल पकड़ा हुआ है। सभी राजनीतिक दल एक साथ जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर बिहार विधानसभा में विरोधी दल के नेता तेजस्वी यादव भी जातिगत जनगणना की मांग केंद्र सरकार से कर रहे हैं। गौरतलब है कि 2019 के फरवरी में बिहार विधानमंडल और 2020 में बिहार विधानसभा में जातीय जनगणना कराने का लेकर प्रस्तुत प्रस्ताव को पास किया जा चुका चुका है। जातीय जनगणना कराने को लेकर प्रस्तुत प्रस्ताव दोनों सदनों से पास होने के बाद बिहार सरकार ने अब तक दो बार केंद्र सरकार को प्रस्ताव भी भेज चुकी है, लेकिन दोनों बार केंद्र सरकार की तरफ से कोई प्रतिउत्तर नहीं भेजा गया।

जनगणना क्या है?

जनगणना को नीतियां बनाने का प्रमुख आधार माना जाता रहा है। जनगणना से प्राप्त आंकड़ों से ही देश व राज्य की वास्तविक भौगोलिक व सामाजिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है। हकीकत यह है कि जनगणना से प्राप्त आंकड़ें ही सरकार के अलावा समाजशास्त्रियों, विचारकों, इतिहासकारों, राजनीतिशास्त्रियों आदि के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है।

सांकेतिक फोटो

इन आंकड़ों के मुताबिक ही राज्य व देश में कुल कितने लोग हैं, किस आयु वर्ग के कितने लोग हैं, किस भाषा को बोलने वाले लोग कितने हैं, किस धर्म के कितने लोग है, लोग कितने शिक्षित हैं, देश में कितने पुरुष और कितनी औरतें हैं, कितने लोग विवाहित हैं और कितने अविवाहित, पिछले दस साल में कितने बच्चे पैदा हुए, देश में कितने तरह के रोजगार हैं और कितने लोग किस रोजगार में लगे हैं, किन लोगों ने दस साल में अपने रहने का ठिकाना बदल लिया है आदि का पता लगाया जाता है।

आखिरी बार देश में कब हुई जातिगत जनगणना?

भारत में आखिरी बार 1931 में जाति आधारित जनगणना हुई थी। अब तक उसी आधार पर यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं। हालांकि एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इसके बाद यानी आजादी से पहले 1941 में जातियों की गिनती हुई थी लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के चलते आंकड़ों को एकत्रित नहीं किया जा सका था। इसके बाद 1951 से 2011 तक की प्रत्येक जनगणना में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर आंकड़े प्रकाशित किए गए हैं, लेकिन किसी अन्य जातियों पर आंकड़ों को प्रस्तुत नहीं किया गया।

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जातिगत आधारित जनगणना को लेकर सरकार की अवधारणा क्या है?

जातिगत आधारित जनगणना कराने को लेकर सरकार की अवधारणाओं को जानने के लिए तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के बयान से समझा जा सकता है। 1951 में जब तत्कालीन सरकार के पास भी जातीय जनगणना कराने का दबाव बनाने के लिए एक प्रस्ताव आया था। उस वक्त तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ये कहकर उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था कि जातीय जनगणना कराए जाने से देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सकता है। बहरहाल केंद्र की मोदी सरकार भी कोई जाति जनगणना कराकर सामाजिक ताना-बाना बिगड़ना नहीं चाहती है।

तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल

बिहार की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां जेडीयू और आरजेडी जाति आधारित जनगणना क्यों कराना चाह रही हैं?

बिहार में सभी धर्म के लोग रहते हैं। बिहार में एनडीए की सरकार है और एनडीए की सरकार में नीतीश कुमार की जेडीयू पार्टी सहयोगी की भूमिका में है। अलबत्ता नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री है। बिहार में सदियों से जातिगत राजनीति का बोलबाला रहा है। आलम यह है कि जातिगत आधारित वोट बैंक के चलते बिहार को बड़ा नुकसान होता रहा है।

तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार

जानकारों के मुताबिक, बिहार में किस जाति के कितने लोग हैं? किस जाति के लोग कितने पिछड़ें हैं? इसका सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है। राजनीतिक पार्टियों का मानना है कि इसके चलते बिहार में विकास की रफ्तार में वो धार नहीं है जिसका हम उम्मीद करते रहे हैं। बहरहाल, बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर भले ही मत अलग-अलग मत रहे हों, लेकिन बिहार में जातिगत राजनीति का ही बोलबाला रहा है।

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जेडीयू और आरजेडी दोनों पार्टियां सत्ता प्राप्त करने के लिए जातिगत समीकरणों पर ही ज्यादा भरोसा करती हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार जातिगत जनगणना करा कर ओबीसी वोटबैंक को साधने की कवायद में लगे हुए हैं तो वहीं आरजेडी जनगणना करा कर ओबीसी वोटबैंक को अपने पाले में मजबूत करने की होड़ में है।

तेज प्रताप यादव ,तेजस्वी यादव व अन्य राजद के नेता

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हालांकि, अब जातिगत आधार पर जनगणना की मांग के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे यह पता चलेगा कि कौन जाति अभी भी पिछड़ेपन का शिकार है। ताकि उन जातियों को उनकी संख्या के हिसाब से आरक्षण का लाभ देकर स्थिति को और मजबूत किया जा सके।

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Rupesh Ranjan is an Indian journalist. These days he is working as a Independent journalist. He has worked as a sub-editor in News Nation. Apart from this, he has experience of working in many national news channels.

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