New Delhi: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के जारी प्रर्दशन के बीच एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है. कोर्ट ने कहा है कि विरोध प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक सड़क को अनिश्चितकाल तक के लिए रोकना सही नही है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन मामले में दिए फैसले पर दोबारा विचार की मांग की गई थी, इस मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया और यह टिप्पणी की है। वहीं याचिकाकर्ताओं का कहना है कि किसानों के प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा स्टैंड को आधार बनाते हुए शाहीन बाग मामले को भी नए सिरे से देखे जाने की जरुरत है। इस मांग को भी सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया।

शाहीन बाग आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था:
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में हो रहे आंदोलन को लेकर पिछले साल 7 अक्टूबर को अमित साहनी बनाम दिल्ली पुलिस कमिश्नर मामलें में कोर्ट ने फैसला सुनाया था। सीएए आंदोलन को लेकर दिए गए फैसले में कोर्ट ने कहा था कि, “शाहीन बाग में CAA विरोधी प्रदर्शन के लिए जिस तरह से लंबे समय के लिए सार्वजनिक सड़क को रोका गया, वह गलत था. विरोध प्रदर्शन के नाम पर सड़क को इस तरह से नहीं बाधित किया जा सकता है.”

फैसले में कानूनी तौर पर कोई कमी नहीं:
आंदोलन के लेकर दायर किए गए याचिका पर सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के तय प्रक्रिया के तहत 9 फरवरी को जस्टिस संजय किशन कौल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की बेंच ने अपने फैसले को सुरक्षित रखते हुए एक संक्षेप में लिखा हुआ आदेश पारित किया। इस आदेश के अनुसार, “हमें नहीं लगता कि मामले में दिए गए फैसले में कानूनी तौर पर कोई कमी है. इसलिए, उस पर दोबारा विचार नहीं हो सकता.”

जजों ने क्या कहा:
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों ने मुख्य फैसले में लिखी बातों को दोहराते हुए कहा कि, “विरोध का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है. लेकिन इसका इस्तेमाल कहीं भी और कभी भी नहीं किया जा सकता है. यह कुछ देर के लिए तो हो सकता है. लेकिन विरोध प्रदर्शन के लिए लंबे समय तक किसी सार्वजनिक जगह को नहीं घेरा जा सकता है.”

किसानों को हटाने का नहीं दिया था आदेश:
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों को हटाने के लिए 17 दिसंबर 2020 को अहम सुनवाई हुई थी, इसमें सीजेआई एसए बोबड़े की बेंच ने किसानों को हटाने का आदेश देने से साफ इंकार कर दिया था। उन्होने किसानों की संख्या को ज्यादा देख आदेश दिया था कि, “फिलहाल आंदोलनकारियों को वहीं रहने दिया जाए. सिर्फ यह सुनिश्चित किया जाए कि विरोध शांतिपूर्ण हो.”

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