NEW DELHI: लड़कियां किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं होती…ये लाइन हमने बहुत बार सुनी है क्योंकि हर बार लड़कियों ने अपनी कामयाबी और अपने हुनर के दम पर ये टैग हासिल किया है। लेकिन आज भी कुछ रीति रिवाजों में लड़कियों का योगदान वर्जित माना गया है जैसे अंतिम संस्कार। अंतिम संस्कार में ना तो लड़की शामिल हो सकती है..और ना नहीं अंतिम संस्कार जैसे काम पुरोहितों की तरह करा सकती है लेकिन सीतापुर की एक कन्या ने इस रीत को तोड़ दिया है। यूपी के सीतापुर की करने वाली कुमारी विजेंद्री आर्या रूढ़िवादी परंपरा का दी एंड करते हुए श्मशान घाट में लोगों को मुक्ति देने का काम कर रही हैं।

दरअसल अंतिम संस्कार की विधि सीतापुर के चमखर गांव की रहने वाली विजेंद्री ने अपने पिता से ही सीखी है उनके पिता पिछले बीस साल से यही काम करते आ रहे हैं। वह अपने पिता की इकलौती बेटी हैं। उन्होंने सीतापुर शिक्षण संस्थान में बी फार्मा की छात्रा हैं। विजेंद्री बताती हैं कि उनके  पिता ने उनका पालन पोषण एक लड़के की तरह किया है। उनका यज्ञोपवीत संस्कार भी कराया है। उन्हीं से अंतिम संस्कार की विधि सीखी है। कुमारी विजेंद्री आर्या की सबसे खास बात ये है कि वो अपनी इस विद्या का इस्तेमाल जरुरतमंद लोगों के लिए करती हैं।

कुमारी विजेंद्री आर्या श्मशान घाट पर फ्री में अंतिम संस्कार करती हैं। विजेंद्री का मानना है कि कोरोना के संकट में लाखों लोगों ने अपनों को खोया। उस दौरान कई ऐसे कई लोग से जिनके पास अंतिम संस्कार कराने तक के पैसे नहीं थे..मेरे पिता ने हमेशा दूसरों की मदद करना सिखाया है..उसी से प्रेरणा लेते हुए नि:शुल्क अंतिम संस्कार करने का फैसला लिया। शुरू में श्मशान घाट पर जाने में दिक्कत आई थी लेकिन पिता के सपोर्ट के साथ ये भी सीख लिया।

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