देश में एक बार फिर कोरोना का कहर फैलता हुआ नजर आ रहा है। इस बार एक नए खतरे के रूप में ओमिक्रॉन वेरिएंट मुसीबत बना हुआ है। डब्ल्यूएचओ ने इस वेरियंट को लेकर चिंता भी जाहिर की है और इसको ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ के रूप में सूचीबंद्ध भी कर दिया है। दुनिया के मशहूर एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिकों का दावा है कि यह डेल्टा वेरिएंट से भी ज्यादा घातक है। सिर्फ यही नहीं यदि यह भारत में फैलता है, तो इसपर मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज थेरेपी का भी कोई असर नहीं होगा।

ओमिक्रॉन वेरिएंट के नुकसान

डेल्टा वेरिएंट के बाद अब एक नया वेरिएंट अस्तित्व में आया है इसलिए वेरिएंट का प्रभाव दक्षिण अफ्रीका समेत कई अन्य देशों में दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। शुरुआती विश्लेषण के आधार पर इस वेरिएंट को  ओमिक्रॉन वेरिएंटका नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों का तर्क है कि यह वेरिएंट डेल्टा से भी ज्यादा घातक है और यह 6 गुना तेजी से फैलता है। सिर्फ यही नहीं कई रिपोर्ट्स में इस बात का दावा किया गया है कि भारत में दूसरी लहर के कारण जितनी तबाही मची थी।

यह वेरिएंट उससे भी ज्यादा बड़ी तबाही ला सकता है।टाइम्स ऑफ इंडिया में ओमिक्रॉन वेरिएंट से संबंधित एक रिपोर्ट छपी है। जिसके मुताबिक यह पिछले वेरिएंट से भी ज्यादा खतरनाक बताया गया है सिर्फ यही नहीं यह वेरिएंट वैक्सीनेशन के प्रभाव से भी अछूता है और इस पर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का भी कोई असर नहीं होता। हालांकि जब भारत में डेल्टा वेरिएंट फैला था, तो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी का असर पीड़ितों पर दिखाई दिया था, परंतु डेल्टा प्लस वेरिएंट के मरीजों पर इस थेरेपी का कोई असर नहीं पड़ा। अब एक्सपर्ट्स का ऐसा कहना है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट पर भी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ट्रीटमेंट का कोई असर नहीं होता।

क्या कहते हैं डॉक्टर्स?

दक्षिण अफ्रीका के कई वैज्ञानिकों, एक्सपर्ट्स और डॉक्टरों ने अपने-अपने हिसाब से अलग-अलग तर्क दिए हैं। इस बीच इस वेरिएंट की पहचान करने वाले डॉक्टर एंजेलीके कोएट्जी ने बीबीसी को दिए अपने बयान में कहा है कि “मैंने इसके लक्षण सबसे पहले कम उम्र के एक शख्स में देखे थे। वह तकरीबन 30 साल का था। इस वेरिएंट से प्रभावित मरीज को बहुत ज्यादा थकावट रहती है।”

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