उत्तर प्रदेश की महिला शिक्षकों ने महिला केंद्रित समस्याओं के निवारण के लिए अपना अलग संघ बनाया है। संघ ने तीन दिन के माहवारी अवकाश की मांग करते हुए एक अभियान शुरू किया है। उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ की अध्यक्ष सुलोचना मौर्य ने शनिवार को बताया कि सरकारी विद्यालयों में शौचालयों की खराब स्थिति को देखते हुए महिला शिक्षकों के लिए तीन दिन का माहवारी अवकाश जरूरी है। इस साल आठ फरवरी को महिला शिक्षकों की समस्याओं के समाधान के लिए उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ का गठन किया। राज्य के प्राथमिक स्कूलों में तैनात कुल शिक्षकों में करीब 60 फीसद महिला शिक्षक हैं और प्रदेश के 75 जिलों में 50 जिलों में संघ की इकाई का गठन हो चुका है।

मौर्य ने कहा कि महिला शिक्षकों की कुछ विशिष्ट समस्याएं हैं जिन्हें केवल महिलाएं ही प्रभावी ढंग से उठा सकती हैं और संघ उन पर काम कर रहा है। DISTRICT INFORMATION SYSTEM for EDUCATION के 2017-18 के आंकड़ों के मुताबिक यूपी में 95.9 per cent स्कूलों में लड़कियों और महिलाओं के लिए अलग से टॉयलेट हैं, ये आंकड़ा नैशनल फिगर से बड़ा है, जहां एवरेज 93.6 per cent स्कूलों में ये सुविधा है।

सुलोचना मौर्य के अनुसार, संगठन के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने राज्य के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी से मुलाकात कर अपनी मांगों का एक ज्ञापन दिया और उन्होंने भरोसा दिया कि इस संदर्भ में वह मुख्यमंत्री से चर्चा करेंगे। संघ की अध्यक्ष ने कहा कि हमने उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य से भी मुलाकात कर अपनी मांग रखी है। उन्होंने मांगों को लेकर एक अभियान शुरू किया है और इस समय ट्विटर पर पीरियड लीव हैश टैग नाम से एक अभियान चल रहा है और इसे महिलाओं ने लाखों की संख्‍या में री-ट्वीट करते हुए कहा है कि यह हमारा अधिकार है।

लेकिन ये पहला मौका नहीं है
फूड डिलीवरी कंपनी ज़ोमेटो ने नई पहल चालू करते हुए अपनी महिला कर्मचारियों के लिए प्रति वर्ष 10 दिन की ‘पीरियड लीव’ की घोषणा की थी।ज़ोमेटो ऐसी पहली कंपनी नहीं है जिसने इस तरह की योजना पर काम किया हो. इससे पहले मुंबई स्थित कल्चर मशीन, गुड़गांव स्थित गोज़ूप और कोलकाता की फ़्लाईमाईबिज़ नाम की कंपनी इस तरह की पहल के साथ सामने आ चुकी हैं। Multinational कंपनियों में Nike साल 2007 में इस तरह की छुट्टियों को शुरू कर चुकी है। पश्चिमी देशों में भी कई संस्थान अपने यहां काम करने वाली महिलाओं को पीरियड के दिनों छुट्टियां देते हैं।

The Right to Menstrual Leave

ऐसा नहीं है कि हर महिला को पीरियड्स के समय परेशानी होती है मगर जिन महिलाओं को पीरियड्स के वक़्त परेशानी होती है, उन्हें इस दौरान छुट्टी की ज़रूरत होती है। इसे देखते हुए सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में महिलाओं को छुट्टी दी जाती है।अरुणाचल प्रदेश से आने वाली सांसद, निनांग एरिंग ने एक प्राइवेट मेंबर बिल, मेन्सटूरेशन बेनीफ़िट 2017 में लोकसभा में पेश किया था। इस बिल में सरकारी और नीजि क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान दो दिन की छुट्टी देने का प्रस्ताव दिया गया। साथ ही ये पूछा गया था कि सरकार क्या ऐसी किसी योजना पर विचार कर रही है। इस पर महिला और विकास मंत्रालय ने कहा था कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।

भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था

देखते हैं सिंविधान इस मामले में क्या कहता है । Constitution के Article 42 के तहत, राज्य को “काम की न्यायसंगत और मानवीय परिस्थितियों को सुरक्षित करने और maternity relief के लिए प्रावधान करना” अनिवार्य है। अनुच्छेद 15 के तहत, हालांकि केवल लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक है, अनुच्छेद का clause 3, राज्य को महिलाओं के लिए कोई विशेष प्रावधान करने वाले कानून पारित करने के लिए अधिकृत करता है। इस प्रकार, मासिक धर्म की छुट्टी के अधिकार को मान्यता देने वाला संसद द्वारा एक कानून का पारित होना न केवल संवैधानिक होगा, बल्कि संविधान के तहत राज्य के दायित्व की पूर्ति होगा।

इससे पहले कुछ और राज्यों में पीरियड लीव को हरी झंडी दी जा चुकी है । 1991 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे, 32 दिन की हड़ताल के दौरान कुछ महिलाओं ने मेन्स्रुअल लीव की मांग रख दी। लालू प्रसाद यादव ने पूरी मांगों को धैर्य से सुना और मेन्स्रुअल लीव की मांग मान ली। 1992 में ही मिल गई महिलाओं को मेन्स्रुअल लीव की मंजूरी मिल गई।

केरल के एक स्कूल ने 1912 में मंजूर की थी मासिक धर्म की छुट्टी


केरल के एर्नाकुलम जिले के त्रिपुनिथुरा के सरकारी बालिका विद्यालय ने 1912 में छात्राओं को वार्षिक परीक्षा के समय मासिक धर्म की छुट्टी और परीक्षा बाद में लिखने की अनुमति दी थी।अब उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह की मांग उठाई जा रही है। यहां अलगे साल विधानसभा चुनाव है, तो सरकार भी इसे अनदेखा करने की स्थिति में नहीं है।

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