दिल्ली की सीमा पर डेरा डाले हुए किसानों ( सिंघु, टिकरी और गाजियाबाद)  ने 15 महीने का आंदोलन आज खत्म करने के बाद बॉर्डरों को खाली करना शुरू कर दिया है। 1 साल से ज्यादा की लंबी लड़ाई के बाद किसानों की जीत हुई। हरियाली के खेते के झोंके खाने वाला किसान 378 दिनों से दिल्ली की धूल भरी और कार्बन मोनो-ऑक्साइड उगलती हुई कारों के धुएं खाने को मजबूर थे लेकिन आज सभी घर वापसी कर रहे हैं वो भी अपने चेहरों पर मुस्कान लेकर। आज किसान विजय मार्च निकालेंगे क्योंकि वे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में अपने गांवों को लौट रहे हैं।

धूप के थपेड़े झेलते रहे किसान


इस एक साल के भीतर अलग-अलग बॉर्डरों पर किसानों का अलग-अलग रूप देखने को मिला। गर्मियों में किसानों का कैंप सूरज की तेज रोशनी से भभक उठता था। वहीं सर्दियों में सरसरी हवा के थपेड़ों ने शरीर को हिलाकर रख दिया। लेकिन किसान डटे रहे। एक किसान ने बताया कि ठंड में सड़कों का बिछावन एकदम ठंडा हो जाता…कोहरा पानी की बूंद बन तंबू से टपकने लगता। सुबह कभी-कभी अगर हम दिल्ली की गलियों में टहलने निकलते तो कोने की कोठी से आ रही गर्म-गर्म रोटी की खुशबू हमें अपने गेहूं के खेत की याद दिला देती। अब तंबू से तिरपाल हटाये जा रहे हैं, प्लास्टिक की शीट्स खोली जा रही है। लोहे से तैयार ये ठिकाने एक बार फिर सड़क बनने को तैयार है। 

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किसानों ने दिखाया अपना अलग रूप


किसान आंदोलन में अन्नदाताओं ने अपनी शक्ति का अद्भुत प्रदर्शन दिखाया। जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। खुद राकेश टिकैत किसान आंदोलन के समय एक बड़ा चेहरा बनकर उभरे थे।किसान नेता महेंद्र टिकैत की विरासत को किसानों ने अपनी शक्ति बना ली और दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा समेत कई राज्यों की सीमाओं पर अपना डेरा जमा लिया था। अब एक और मौसम की मार झेलने से पहले किसान अपने परिवारों के पास लौट रहे हैं। 

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