त्रिपुरा पुलिस द्वारा मस्जिदों पर झड़पों और कथित हमलों को लेकर 102 सोशल मीडिया हैंडल के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) लागू करने के एक दिन बाद एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इसकी आलोचना की है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा कि ये उन लोगों के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई से हैरान है जो राज्य में हालिया सांप्रदायिक हिंसा पर रिपोर्टिंग और लेखन कर रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि सरकार सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर खबरें प्रकाशित/प्रसारित करने से रोकने के लिए कठोर कानून का उपयोग नहीं कर सकती।

एडिटर्स गिल्ड ने की आलोचना


एडिटर्स गिल्ड ने एक प्रेस बयान में कहा कि यह हिंसा के कुछ दिनों के बाद हुआ जब पुलिस ने दिल्ली के कुछ वकीलों के खिलाफ यूएपीए के आरोप दायर  किया। दिल्ली के वकील सांप्रदायिक हिंसा में एक स्वतंत्र तथ्य खोजने वाले जांच आयोग के हिस्से के रूप में त्रिपुरा गए थे। उनका कार्रवाई करना बेतुका लगता है। पत्रकारों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि पत्रकारों में से एक, श्याम मीरा सिंह ने आरोप लगाया है कि केवल ‘त्रिपुरा जल रहा है’ ट्वीट करने पर  उन पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है। यह एक बेहद परेशान करने वाली प्रवृत्ति है, जहां इस तरह के कठोर कानून, जहां जांच की प्रक्रिया और जमानत की अर्जी बेहद कठोर और दबंग हैं, का इस्तेमाल केवल सांप्रदायिक हिंसा पर रिपोर्टिंग और विरोध करने के लिए किया जा रहा है।

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त्रिपुरा सरकार हिंसा को काबू करने में असफल रही

उन्होंने अपने बयान में आगे कहा कि पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई से वह ‘बहुत सकते में है’ और यह बहुसंख्यकों द्वारा की गई हिंसा को नियंत्रित करने में असफल रही त्रिपुरा सरकार द्वारा अपनी असफलता छिपाने का प्रयास है। बता दें कि रविवार को त्रिपुरा पुलिस ने  102 इंटरनेट मीडिया खाता धारकों के खिलाफ यूएपीए, आपराधिक साजिश और फर्जीवाड़े के आरोपों के तहत मामला दर्ज किया था। जिसके साथ ही  ट्विटर, फेसबुक व यूट्यूब को नोटिस भेजकर इनके खातों तक को फ्रीज करने का निर्देश दिया था।

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