श्रीलंका में नए साल की शुरुआत एक बुरे सपने के साथ हुई है। देश पहले ही कोविड-19 से जूझ रहा है। ऐसे समय में पर्यटन उद्योग की तबाही, बढ़ते सरकारी खर्चे और टैक्स में कटौती के कारण श्रीलंका का सरकारी खजाना भी खत्म हो गया है। आर्थिक संकट का असर लोगों के जीवन पर प्रभाव डाल रहा है। अब लोगों को खाने पीने की चीजें ऊंची दरों पर उपलब्ध हो रही हैं।

अनाज भी महंगा

श्रीलंका की जीडीपी (GDP) में पर्यटक क्षेत्र का योगदान 10 फ़ीसदी से ज्यादा है। महामारी ने पहले पर्यटकों को चौपट कर दिया और चीन के कर्ज से श्रीलंका अब पूरी तरह दब चुकी है। श्रीलंका में अनाज की कीमत भी अचानक बढ़ गई है क्योंकि उर्वरक लोगों को महंगी मात्रा में मिल रहे हैं। वहां के किसानों का कहना है कि सरकार के पास पैसे नहीं है कि उर्वरक पर सब्सिडी दे।

कर्ज में डूबी श्रीलंका

श्रीलंका के विपक्षी सांसद और अर्थशास्त्री हर्ष शुक्ला ने हाल ही में संसद में कहा था कि इस साल जनवरी में श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा -43.7 करोड डॉलर होगी जबकि फरवरी में कर चुकाने के लिए 4.8 अरब डॉलर की जरूरत पड़ेगी। इस तरह श्रीलंका कर्ज में डूब जाएगी।

उर्वरक और कीटनाशकों के इस्तेमाल पर पाबंदी

पिछले साल राज्य पक्षी सरकार ने अचानक से सभी तरह के उर्वरक और कीटनाशकों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी थी। किसानों को सरकार के ऑर्गेनिक खेती करने पर मजबूर किया। सरकार के इस फैसले पर किसानों को घुटने के बल ला दिया था।

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15000 एकड़ जमीन चीन को सौंपी

श्रीलंका के चीन से कर्ज लेने के बाद श्रीलंका को हंबनटोटा पोर्ट के साथ 15000 एकड़ जमीन भी देनी पड़ी। श्रीलंका ने चीन को जो इलाका सौंपा है वह भारत से 100 किलोमीटर की दूरी पर है। इस तरह श्रीलंका के सामने एक नया आर्थिक संकट भी खड़ा हो गया है।

देश छोड़ने को तैयार लोग

श्रीलंका के स्थानीय अखबारों की जानकारी के अनुसार श्रीलंका के पासपोर्ट ऑफिस में लंबी लाइनें लग रही है। श्रीलंका से पढ़े लिखे नौजवान में हर चार में से एक देश छोड़ना चाहता है क्योंकि आर्थिक तंगी के इन हालातों को देखकर श्रीलंका के बुजुर्गों को 1970 के दशक की याद आती है। जब आयात नियंत्रण और देश के भीतर कम उत्पादन के कारण बुनियादी सामानों के लिए भी लोगों को लंबी लाइनों में लगना पड़ता था।

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