Namaz Controversy: उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में छजलैट थाना के गांव धौलपुर में एक घर में सामूहिक रूप से नमाज पढ़ने वाले 26 लोगों पर मुकदमा दर्ज होने का एक बड़ा मामला सामने आया है। बता दें कि मुरादाबाद में 24 अगस्त को एक घर में सामूहिक रूप से नमाज पढ़ी गई थी। इसकी शिकायत होने पर 26 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया। लेकिन अब इसे लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। एआईएमआईएम नेता ओवैसी ने ट्वीट कर सरकार और पुलिस पर निशाना साधा है।

नमाज के लिए पुलिस से इजाजत

ओवैसी ने ट्वीट कर लिखा है “क्या अब घरों में भी नमाज पढ़ने के लिए सरकार और पुलिस से इजाजत लेनी पड़ेगी। कब तक मुस्लिमों के साथ देश में दूसरे दर्जे के नागरिकों वाला सलूक किया जाएगा।” अब इन सब के बीच एक सवाल खड़ा होता है कि आखिर नमाज पढ़ने के लिए कानून क्या कहता है। इस मामले में कुछ मुस्लिम नेता इस बात को लेकर मुद्दा बना रहे हैं कि लोग घर में नमाज पढ़ रहे थे तो क्या दिक्कत है। इस मामले में मुरादाबाद के कांठ से एसडीएम जगमोहन गुप्ता का कहना है कि निजी संपत्ति में अकेले नमाज पढ़ना गलत नहीं है, परिवार के साथ भी नमाज पढ़ सकते हैं लेकिन इस तरह सामूहिक नमाज नहीं पढ़ी जा सकती।

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सार्वजनिक संपत्ति पर नमाज पढ़ने का कानून

सवाल खड़ा हुआ है कि मंदिर मस्जिद भी सार्वजनिक संपत्ति की श्रेणी में आते हैं। इन जगहों पर नमाज या पूजा की अनुमति दी गई हैं। ऐसे में लोग इस सवाल का जवाब जानना चाहते हैं कि सार्वजनिक संपत्ति पर नमाज पढ़ने की अनुमति हैं, लेकिन लुलु मॉल में नमाज को लेकर हंगामा क्यों किया गया था। यहां पर कानून इसका भी अंतर बताता है कुछ वरिष्ठ वकीलों ने बताया कि मॉल, अस्पताल, मंदिर मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल सिनेमा हॉल, अदालतें, बारात घर या पार्क स्थल की कैटेगरी में आते हैं।

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लाइसेंस की जरूरत

इन स्थलों का निर्माण खास मकसद से होता है। इन सब में अलग-अलग सेवाओं के लिए अलग-अलग लाइसेंस की जरूरत होती है। कानून कहता है कि अगर एक सार्वजनिक स्थल या संपत्ति का इस्तेमाल निर्धारित सेवा की जगह किसी दूसरी श्रेणी के सेवा के लिए हो, यह सेवाओं का उल्लंघन है और इसकी प्रशासनिक अनुमति जरूरी है।

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