जेरुसलम एक बार फिर तनाव का केंद्र बन गया है. पिछले कई हफ्तों से ये शहर इजरायली सुरक्षा बलों और फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों के टकराव का गवाह बन रहा है।इसराइली सेना और फ़िलिस्तीनी हमास के बीच लगातार पाँचवें दिन जंग जारी है. इसराइल ने गाज़ा में अपनी कार्रवाई तेज़ कर दी है, वहीं फ़िलिस्तीनी इसराइल में रॉकेट दाग रहे हैं. इसराइल के पीएम बिन्यमिन नेतन्याहू ने कहा है कि इसराइली सेना गाज़ा में जबतक ज़रूरी हुआ फौजी कार्रवाई करती रहेगी।जुमे की सुबह उन्होंने एक बयान में कहा कि “हमास को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी”.वहीं हमास के फ़ौजी तर्जुमान ने कहा है कि इसराइली फ़ौज ने अगर ज़मीनी कार्रवाई करने का फ़ैसला किया तो वो उसे “कड़ा सबक” सिखाने के लिए तैयार हैं.

क्यों महत्वपूर्ण है जेरुसलम?
जेरुसलम ईसाइयों, यहूदियों और मुसलमानों के लिए बराबर का महत्त्व रखता है. तीनों धर्मों के सबसे महत्वपूर्ण पवित्र स्थानों में से एक जेरुसलम में स्थित हैं.ईसाइयों के लिए ये Holy Sepulchre चर्च है. ऐसा माना जाता है कि ये वही जगह है, जहां जीसस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाया गया था और यहीं पर वो दोबारा जिंदा हुए थे. माना जाता है कि चर्च में जीसस का खाली ताबूत भी है

मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र स्थान अल-अक्सा मस्जिद जेरुसलम में है. अरब भाषा में इस शहर को अल-क़ुद्स कहा जाता है. मुसलमान मानते हैं कि पैगंबर मोहम्मद मेराज के दौरान मक्का की मस्जिद से अल-अक्सा मस्जिद लाए गए थे. इस मस्जिद के परिसर में डोम ऑफ रॉक है, जिसके लिए कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद यहां से जन्नत गए थे. के अलावा अल अक्सा मुस्जिद मुसलमानों का पहला किब्ला भी था. किब्ला यानि वो दिशा जिसका रुख करके मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं. बाद में किब्ला मक्का का काबा हो गया.

दूसरी आलमी जंग तक इज़रायल जब वजूद में नहीं था तो इज़रायल बना कैसे ?…और यरुशलम पर कब्ज़े को ईसाईयों, मुसलमानों और यहूदियों ने हमेशा अपनी आन बान और शान से जोड़ कर क्यों देखा है. इतिहासकारों का मानना है कि सबसे पहले यरुशलम, यहूदियों के राजा किंग डेविड की राजधानी थी. लेकिन ईसाई और इस्लाम धर्म के विस्तार के बाद यूरोप और एशिया में यहूदी लगातार कमजोर होते गए . यहूदी लोग पूरी दुनिया में बिखर गए और उन पर जुल्क का सिलसिला शुरु हो गया.

19वीं शताब्दी में थियोडौर हैरत्ज़ल नाम के एक यहूदी विचारक थे. उन्होंने यहूदी कौमियत की नींव रखी थी. इसके बाद पूरी दुनिया के यहूदियों ने ये हलफ लिया कि यरुशलम उनका मदरलैंड है और उन्हें दोबारा यरुशलम पर कब्ज़ा करना है. इसके बाद बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में पहले विश्व युद्ध के दौरान यरुशलम  पर ब्रिटेन का कब्जा हो गया और 700 साल के बाद यरुशलम गैर-मुसलमानों के हाथों में चला गया और यहीं से इजराइल के वजूद की कहानी शुरू होती है . कहा जाता है कि ब्रिटेन ने यहूदियों को यरुशलम  में बसाने का लालच देकर पहले विश्व युद्ध में यहूदियों की हिमायत हासिल कर ली. बहुत ही चालाकी से ब्रिटेन ने अरब देशों को भी यरुशलम का लालच दिया था

आज के इसराइल को तब फिलिस्तीन कहा जाता था और उसमें अरब के मुसलमानों की आबादी थी. लेकिन बहुत मुनज़्ज़म तरीके से यहूदियों ने यरुशलम की तरफ हिजरत की, धीरे-धीरे पूरे इलाके में यहूदियों की आबादी बहुत बढ़ गई और अरब के मुसलमान कमज़ोर होते गए . वर्ष 1947 में United Nations ने इसराइल को एक मुल्क के तौर पर मंज़ूरी दे दी, लेकिन यरुशलम  को एक इंटरनैशनल शहर के तौर पर मान्यता दी गई. ताकि सर्वधर्म समभाव बना रहे . तब यरुशलम पर इजराइल का कंट्रोल नहीं था.

जेरुसलम का इतिहास
जेरुसलम दीवार से घिरा हुआ शहर है. क्योंकि इतिहास में इस पर कई बार कब्जा किया गया है, इसलिए इसकी किलेबंदी की गई थी. 1000 BC में डेविड ने जेरुसलम पर हमला किया और इस पर कब्जा कर दीवारें बनाईं.


शहर में यहूदियों का पहला मंदिर किंग सोलोमन के समय में बनाया गया था. 586 BC में शहर बेबीलोनियन राजाओं के कब्जे में चला गया. उन्होंने मंदिर तुड़वा दिया था, लेकिन फिर खुद ही इसका निर्माण कराया.


रोमन काल में जेरुसलम के नजदीकी शहर बेथलेहम में जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ था. हालांकि, जीसस को मौत की सजा जेरुसलम की दीवारों के ठीक बाहर स्थित एक जगह गोलगोथा पर दी गई थी.


313 AD तक आते-आते जेरुसलम के मंदिर को एक रोमन बादशाह ने यहूदियों को सजा देने के लिए तोड़ दिया था तो एक राजा ने पूरे शहर को दोबारा बनवाया. 135 AD में शहर का दोबारा निर्माण करवाने वाले रोमन बादशाह हेड्रियन ने जेरुसलम समेत आसपास के इलाकों का नाम फिलिस्तीन रखा.
फिर 313 AD में रोम में ईसाई धर्म का प्रभाव बढ़ने के बाद जेरुसलम ईसाइयों के लिए पवित्र स्थान बन गया.


638 AD में नया धर्म इस्लाम ने अपना प्रभाव बढ़ाया और खलीफा उमर इब्न-अल खत्ताब की सेना की अध्यक्षता कर रहे अबु-उबैदाह ने शहर पर कब्जा किया.
1099 AD में ईसाई धर्मयोद्धाओं ने जेरुसलम पर कब्जा किया और शहर की जनसंख्या का बड़े स्तर पर कत्लेआम किया.
1187 AD में सलाह अल-दीन के नेतृत्व में मुस्लिम फौजों ने फिर जेरुसलम पर कब्जा कर लिया.


ममलूक और ऑटोमन शासन के दौरान जेरुसलम का फिर से निर्माण कराया गया. ऑटोमन शासन के दौरान फिलिस्तीन में यहूदियों की मौजूदगी बहुत ज्यादा नहीं थी. लेकिन 1900 तक यहूदी जेरुसलम का सबसे बड़ा समुदाय बन गया.


पहले विश्व युद्ध के दौरान 1917 में ब्रिटिश सेना ने जेरुसलम पर कब्जा किया. इसी साल ब्रिटिश विदेश मंत्री आर्थर बेल्फोर ने फिलिस्तीन में यहूदियों के एक देश की मांग को समर्थन दिया.


युद्ध के बाद जेरुसलम को फिलिस्तीन की राजधानी बनाया गया लेकिन उसे ब्रिटिश शासनादेश के तहत रखा गया. शासनादेश के खत्म होने के समय अरब और यहूदियों ने शहर का कब्जा चाहा, लेकिन ईसाइयों ने शहर को तीनों धर्मों के लिए खुला रखने की मांग की.


संयुक्त राष्ट्र में इसी सलाह को बल मिला और फिलिस्तीन का बंटवारा कर दिया गया. इसे अरब देश, यहूदी देश और अंतरराष्ट्रीय प्रशासन वाला शहर बनाया गया.
14 मई 1948 को ये बंटवारा लागू होना था, लेकिन उससे पहले ही जेरुसलम में यहूदियों और अरब लोगों में युद्ध छिड़ गया.

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