तालिबान ने अफगानिस्तान पर पूरी तरह अपना कब्जा जमा लिया है। अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से 33 प्रांतों में अपना कब्जा कर लिया है। तालिबान केवल पंजशीर पर अपना कब्जा नहीं जमा पाया है। 30 अगस्त को अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपनी दो दशक की जंग का अंत कर दिया है। अमेरिका ने काबुल एयरपोर्ट छोड़ दिया है। अमेरिका के काबुल एयरपोर्ट छोड़ते ही तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा हो गया। पिछले एक महीने में देखते ही देखते तालिबान ने पूरे देश पर कब्जा कर लिया। अब अफगानिस्तान में नई सरकार का भी जल्द ऐलान हो जाएगा।

तालिबान हैबतुल्ला अखुंदजादा आतंकी को देगा कमान!

तालिबान आतंकी नई इस्लामी सरकार बनाने और अपने सबसे बड़े धार्मिक नेता शेख हैबतुल्ला अखुंदजादा को देश का सबसे बड़ा नेता घोषित करने की तैयारी में है। हैबतुल्ला अखुंदजादा उन गिने-चुने आतंकियों में से एक है, जिसकी जानकारी दुनिया के पास बेहद कम है। हालांकि अभी तक यह साफ नहीं है कि इसकी घोषणा कब होगी। लेकिन माना जा रहा है कि दो तीन दिनों के अंदर ऐलान संभव है। हालांकि सरकार में महिलाओं और साथी पक्षों की भागीदारी को लेकर अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं। अपनी छवि को सुधारने के लिए तालिबान कुछ चौंकाने वाली घोषणाएं भी कर सकता है।

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तालिबान के कई बड़े नेताओं ने हैबतुल्ला अखुंदजादा को नहीं देखा

हैबतुल्ला अखुंदजादा एक ऐसा आतंकी है, जिसको उसके ही संगठन के बहुत ही कम लोग देख पाते हैं। तालिबान के कई बड़े नेताओं को भी उसके ठिकाने के बारे में नहीं पता है। वह रोजमर्रा की जिंदगी में क्या कर रहा है, इसकी जानकारी भी तालिबानी लड़ाकों के पास नहीं होती। हालांकि, इस्लामिक त्योहारों पर वीडियो मैसेज के जरिए वह आतंकियों को पैगाम जरूर भेजता है।

काबुल नहीं कंधार चलाएगा हिबतुल्लाह सरकार

मिली जानकारी के मुताबिक, तालिबान का सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा होगा और उसके अधीन ही सर्वोच्च परिषद होगी। बताया जा रहा है कि काउंसिल में 11 या 72 सदस्य हो सकते हैं। इनकी संख्या को लेकर अभी भी मंथन जारी है। बताया जा रहा है कि हिबतुल्लाह अखुंदजादा कंधार में रहेगा। कंधार तालिबान की पारंपरिक राजधानी रही है। ऐसे में यह भी महत्वपूर्ण है कि क्या अब अफगानिस्तान का शासन काबुल के बजाए कंधार से चलेगा।

तालिबान के सामने कई चुनौतियां

अफगानिस्तान से अमेरिका की सेना वापस लौट चुकी है। अब पूरी तरह सत्ता तालिबान के हाथ में है। देश की 3.5 करोड़ की आबादी को संभालना तालिबान के लिए आसान नहीं होगा। तालिबान को इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता की जरूरत पड़ेगी। तालिबान के समक्ष यह भी चुनौती है कि वह ऐसी आबादी पर इस्लामी शासन के कुछ रूप कैसे थोपेगा जो 1990 के दशक के अंत की तुलना में कहीं अधिक शिक्षित और महानगरों में बसी है, जब उसने अफगानिस्तान पर शासन किया था।

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