इतिहास में ऐसे बहुत से साहसी लोग रहे है, जिन्होंने अनजान और काफी दूर तक पहुंचने के लिए समुद्री रास्तों को नेविगेट किया था।जैसे वास्को डी गामा, फर्डिनेंड मैगलन, क्रिस्टोफर कोलंबस, झेंग हे और जैक्स कार्टियर जैसे खोजकर्ताओं ने पूर्व-आधुनिक इतिहास में यूरोप के लिए बहुत से अज्ञात क्षेत्रों के लिए चार्ट बनाया था।नेविगेशन के विज्ञान को पूरा तैयार करने और उस बिंदू तक पहुंचने में हजारों साल लग गए थे। 

हालांकि नेविगेशन का शुरूआती डाकियूमेंटेड इतिहास उन लोगों से आता है, जिन लोगों ने पांच से छह हजार साल पहले सिंधु नदी के समीप अपना रास्ता खोज लिया था। भारत के समुद्री इतिहास की बात करें तो यह 3 हजार ईसा पूर्व जितना पुराना है। इसकी शुरूआत सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के साथ ही हुई है, जिन लोगों ने मेसोपोटामिया सभ्यता के साथ व्यापार किया था। वैदिक अभिलेखों से जानकारी मिलती है कि भारतीय व्यापारियों के सुदूर पूर्व और अरब में व्यापारिक संपर्क थे। 

नौसेना विभाग के प्रमाण 

दुनिया के पहले बंदरगाह की खोज हड़प्पावासियों ने लोथल में लगभग 2400 ईसा पूर्व में की थी। पानी के बहाव से लाई हुई मिट्टी  से बचने के लिए लोथल बंदरगाह वैज्ञानिक रूप से ज्वार से दूर स्थित था। आज के समय के समुद्री वैज्ञानिकों का मानना है कि हड़प्पावासियों को ज्वार-भाटा का बहुत ज्ञान था। जैसा कि यहां की जल-सर्वेक्षण और समुद्री इंजीनियरिंग द्वारा प्रर्दर्शित किया गया है।

भारत का अभ्दुत नमुना एस्ट्रोलैब

भारतीय प्रतिभा का एक अभ्दुत नमूना 14वीं शताब्दी का एस्ट्रोलैब है, जिसे यंत्रों का राजा कहा जाता है। इसे जिनेवा विज्ञान संग्रहालय में रखा गया है। इस उपकरण का प्रयोग उच्च-समुद्र में नेविगेट करने के लिए किया जाता था। यह संस्कृत शिलालेखों के साथ इंडो-मोरक्कन मूल का है।

शब्दों की उत्पत्ति

माना जाता है कि नेविगेशन शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है और यह संस्कृत शब्द  नवगति से उत्पन्न हुआ है। वहीं नौसेना शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नोव शब्द से हुई है। 

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